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Living happy in difficult conditions: गंभीर हालातों में भी आनंदित कैसे रहें?








सद्गुरु जग्गी वासुदेव 

आनंद का सरल अर्थ ये है कि आप एक खास स्तर की सुखद अवस्था में हों। सुखद होने का अर्थ है कि आप के अंदर कोई घर्षण नहीं है। अगर आप यहाँ बैठें, तो आप आराम में हों। ये अपने आप में एक महान आनंद है। अधिकतर लोगों को ये पता नहीं होता कि वे पूर्ण आराम में कैसे बैठें ? मान लीजिये कि मैं आप को इतने सारे लोगों के सामने खड़ा कर देता हूँ, तो आप जो हैं उसके अतिरिक्त कुछ और होने के बारे में बहुत ज्यादा चिंतित हो जायेंगे। आप जो भी हैं, उसके अलावा अगर आप कुछ और होने का प्रयत्न कर रहे हैं तो आप कभी भी आराम में नहीं रह सकेंगे। आप को स्वयं पर काम करना चाहिये, स्वयं को उस तरह तैयार करना चाहिए की आप जैसे हैं, वैसे ही अच्छे हैं।

मैं आराम में रहता हूँ क्योंकि मैं किसी की राय के अनुसार नहीं चलता। किसी की कोई भी राय मुझे सुखी या दुःखी नहीं कर सकती।
ऐसी बात नहीं है कि हर इंसान गलत है। बात बस ये है कि वे 'कुछ और' होना चाहते हैं - और यही बात गलत है। समस्या यह है - सिर्फ शारीरिक दिखावे में ही नहीं, बोलने और व्यवहार करने में भी, लोग जो हैं उससे अलग होने का प्रयत्न कर रहे हैं। मैं सत्संग में भी वैसे ही बोलता हूँ, जैसे बाथरूम में बोलता हूँ। यद्यपि मैं बाथरूम में नहीं बोलता हूँ, मैं ये सिर्फ इसलिये कह रहा हूँ कि अधिकतर लोग सिर्फ बाथरूम में ही गाते हैं। मैं दर्शन में बैठ कर गाता हूँ, इसलिये नहीं कि मैं संगीत जानता हूँ पर इसलिये कि मुझे कोई शर्म नहीं आती। क्योंकि मैं अपने सिवा किसी और को नहीं देखता।

मैं आराम में रहता हूँ क्योंकि मैं किसी की राय के अनुसार नहीं चलता। किसी की कोई भी राय मुझे सुखी या दुःखी नहीं कर सकती। चाहे लोग यह कह रहे हों, "सद्‌गुरु, आप भगवान से भी बढ़ कर हैं", या चाहे वो हर तरह की खराब बात मेरे बारे में कहें, एक भी क्षण के लिये ना वो बात और ना ये, कुछ भी मेरे लिये महत्व नहीं रखती। आप अगर ये सोचते हैं कि मैं ईश्वर से भी बढ़ कर हूँ, तो ये आप के लिये अच्छा है। अगर आप सोचते हैं कि मैं बहुत ख़राब हूँ, तो ख़राब बात केवल आप के मन में ही चल रही है। आप अगर ये सोचते हैं कि मैं अद्भुत हूँ तो ये ऐसा इसलिये है क्योंकि आप के अंदर कुछ अद्भुत हो रहा है। और ये बहुत अच्छा है। आप सोचते हैं कि मैं भयानक हूँ क्योंकि आप के अंदर कुछ भयानक हो रहा है। इस सब से मेरा कोई भी वास्ता नहीं है - मैं इसके बारे में बहुत स्पष्ट हूँ।

दिव्यदर्शी लोग उबाऊ नहीं होते

रहस्यवाद का अर्थ पूर्णतः गंभीर होना नहीं है। ये गंभीरता इसलिये नहीं आती कि आप किसी चीज़ के बारे में गंभीर हैं। गंभीरता इसलिये आती है क्योंकि आप अपने आप को बहुत गंभीरता से लेते हैं। आप अपने अंदर जिन विचारों, भावनाओं, निर्णयों, राय और विचारधाराओं को पोषित करते हैं, उन्हें आप बहुत ज्यादा गंभीरता से लेते हैं। आप अगर मुझे गंभीरता से लें तो फिर आप गंभीर नहीं रहेंगे। हम जिस तरह से भारत में अंग्रेज़ी भाषा का उपयोग करते हैं, अगर कोई कहे, "मेरी दादी गंभीर है" तो हम यही सोचते हैं कि वे अब ऊपर जाने की तैयारी में हैं। आप अगर बहुत गंभीर मुद्रा में रहेंगे तो हम ये नहीं मानेंगे कि आप कोई रहस्यवादी हैं, हम सोचेंगे कि आप उबाऊ हैं।

रहस्यवाद एक खोज यात्रा है। जब आप आनंदपूर्ण होते हैं तब आप अपने जीवन में कोई समस्या नहीं होते। अगर आप खुशी ढूंढ रहे हैं, तो इसका अर्थ ये है कि आप स्वयं एक मुद्दा हैं - आप अपने लिये कोई उपाय ढूंढने का प्रयत्न कर रहे हैं। जब आप अपने स्वभाव से ही आनंदपूर्ण हों तो आप अपने आप में कोई मुद्दा नहीं होंगे। सिर्फ तभी जब आप मुद्दा नहीं होंगे, तब आप बस जीवित रहने की चिंता से आगे बढ़ कर कुछ प्राप्त करने की इच्छा रखेंगे।

रहस्यवाद की खोज में पहला काम ये है कि आप स्वयं अपने जीवन में एक समस्या न हों।

रहस्यवाद का कोई लाभ नहीं है। ये बस विज्ञान की तरह है। विज्ञान के लाभ नहीं होते, लाभ तो तकनीक से मिलते हैं। विज्ञान सिर्फ जानने की गहन इच्छा है। जानने की इच्छा निरा पागलपन होता है। कुछ जानने के लिए लोगों ने अपने प्राण गंवाए हैं। बहुत से वैज्ञानिकों एवं दिव्यदर्शी बनने की इच्छा रखने वालों ने अपना जीवन गँवाया है और ऐसे ही व्यर्थ मर गये हैं। बहुत से लोग खोज करने में मर गये हैं, क्योंकि जानने की प्रक्रिया ही वैसी है। सत्य की भी वैसी प्रकृति है। जब आप जानना चाहते हैं तो सत्य अपने आप को प्रकट न करे, ऐसा हो सकता है - और फिर वो अपना मुँह खोल कर आप को निगल सकता है। जो लोग अंतरिक्ष में जाते हैं, उनके लिये कोई आश्वासन नहीं होता कि वे वापस आयेंगे ही। कुछ भी हो सकता है। किसके लिये? क्या आप को लगता है कि उन्हें उनके टूथपेस्ट के दाम में कोई छूट मिलने वाली है या ऐसा कोई अन्य फायदा मिलने वाला है ? पर वे सिर्फ जानना चाहते हैं, कुछ नया देखना चाहते हैं।

ये विज्ञान की प्रकृति है। यही रहस्यवाद की भी प्रकृति है। ये तभी संभव है जब आप स्वयं कोई मुद्दा नहीं होते, आप स्वयं कोई समस्या नहीं होते। ये तभी होगा जब आप पूरी तरह से आनंदपूर्ण हों। रहस्यवाद की खोज में पहला कदम ये है कि आप स्वयं अपने जीवन में एक समस्या न हों। आप के जीवन में हज़ारों मुद्दे हो सकते हैं, समस्यायें हो सकती हैं पर ये ज़रूरी है कि आप स्वयं मुद्दा न बनें, समस्या न बनें। आनंदपूर्ण होने का अर्थ यही है कि आप स्वयं मुद्दा नहीं हैं। आप को अपने लिये ये करना चाहिये, चाहे आप रहस्यवाद के मार्ग पर हैं, या फिर आप सामान्य रूप से रहना चाहते हैं - दोनों के लिये ये ज़रूरी है कि आप स्वयं कोई समस्या नहीं हों, आप बस एक आनंदपूर्ण मनुष्य हों।


जीवित रहने से आगे बढ़ना

आनंद को किसी योग्यता की तरह मत देखिये। अगर ये जीवन समृद्ध होना है तो यह उसके लिये एक मूल माहौल है। यदि इन वृक्षों को बढ़ना है और उन पर फल फूल आने हैं तो हमें मिट्टी को उपजाऊ रखना होगा। ये एक मूल आवश्यकता है। इसी तरह, सिर्फ यदि आप एक सुखद, खुशनुमा अनुभव की अवस्था में हैं तो ही आप बड़ी चीज़ें खोज पाएँगे। अन्यथा, आप हर समय अपने लिये सीमायें बनाने का ही प्रयत्न कर रहे हैं। आप सिर्फ छोटी चीज़ें करना चाहते हैं, उसके आगे कुछ भी नहीं। जब आप के अंदर पीड़ा है तो कुछ भी बड़ा नहीं खोजेंगे। जब तक आप सिर्फ पीड़ा बनाने के योग्य हैं तब तक आप अपने आप को अपंग बना रहे हैं। पीड़ा का डर आप को सीमित रखेगा, "क्या होगा"? पर, "कुछ भी हो, मैं बस जानना चाहता हूँ" - इस तरह के पागलपन के होने के लिये, यह ज़रूरी है कि आप भरे पूरे हों, जीवंत हों।

ये समय रहस्यवाद के लिये ही है। ये वो समय है जब लोगों को अपनी सीमाओं से बाहर आ कर, इसके परे क्या है, उसकी खोज करनी चाहिये।
इसको वे लोग पागलपन कहते हैं जो जड़बुद्धि हैं। पर सिर्फ ऐसे पागल लोगों के कारण ही विज्ञान, साहसी कार्य, भूगोल आदि संभव हुए हैं। इस धरती पर भूगोल की खोज, अंतरिक्ष का ज्ञान, हर तरह की तकनीकें, ये सब इसलिये घटित हुए क्योंकि कोई ऐसा था जो अपने आराम को छोड़ने के लिये तैयार था। ऐसे लोग कष्ट भोगने के लिये तैयार थे, क्योंकि वे अपने अस्तित्व की सीमाओं से परे को जानने की पूर्णता और उससे मिलने वाले परमानंद को पाना चाहते थे।

उतनी भूख आप के भीतर तभी आ सकती है जब आप कुछ वर्षों तक स्वाभाविक आनंदपूर्ण अवस्था में रहें और समझें कि वास्तव में आप चाहे जो कर रहे हों - छोटी छोटी चीजें, जिनके बारे में लोग इतना बड़ा हौवा खड़ा कर रहे हैं, जैसे नौकरी पाना, काम करना, घर बनाना, शादी करना, दो बच्चे पैदा करना - ये सब कोई बड़ी उपलब्धियां नहीं हैं। सभी प्राणी यही कर रहे हैं। एक चिड़िया भी घोंसला बनाती है, अंडे देती है, बच्चों का पालन करती है, उन्हें खिलाती है, बड़ा करती है और फिर 15 दिनों में वे उड़ जाते हैं। आप इसके बारे में इतना बड़ा नाटक करते हैं।

मानवता के इतिहास में पहली बार, आज हमारे जीवित रहने की प्रक्रिया इतनी व्यवस्थित है, जितनी पहले कभी नहीं थी। तो अब ये समय रहस्यवाद के लिये है। ये वो समय है जब लोगों को अपनी सीमाओं से बाहर आ कर, इसके परे क्या है, उसकी खोज करनी चाहिये। तो हम सही समय पर हैं। आईये, हम इसे सम्भव बनायें।

Courtesy: https://isha.sadhguru.org/
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