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Vrindavan Travel Guide in Hindi: वृन्दावन यात्रा गाइड

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वृन्दावन यात्रा गाइड (Vrindavan Travel Guide in Hindi) 

राधा-कृष्ण के प्रेम रस का प्रतीक वृन्दावन

वृन्दावन (vrindavan) भगवान श्री कृष्ण और राधा के प्रेम रस का प्रतीक है। यह भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुडा हुआ है। मथुरा से 12 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम में यमुना तट पर स्थित वृन्दावन भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का स्थान माना जाता है। हरिवंश पुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में वृन्दावन की महिमा का वर्णन किया गया है। यहाँ के कण-कण में राधा-कृष्ण के प्रेम की आध्यात्मिक धारा बहती है।

वृन्दावन (vrindavan story) पावन स्थली का नामकरण वृन्दावन कैसे हुआ, इसके बारे में अनेक किंवंदन्तिया हैं। पहले यह तुलसी का घना वन था और तुलसी को वृंदा कहते हैं।  इसलिए भी इसे वृन्दावन कहा जाने लगा। वृन्दावन की अधिष्ठात्री देवी वृंदा अर्थात राधा है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार श्री राधा रानी के सोलह नामों में से एक नाम वृंदा भी है। राधा के नाम पर भी इसका नामकरण वृन्दावन हुआ, ऐसा माना जाता है।

वृन्दावन के नामकरण (vrindavan yatra) की एक और कहानी भी है। यहाँ पर वृन्दा देवी ने भगवान विष्णु की तपस्या की थी। उसका पति जलन्धर नाम का एक राक्षस था । वृन्दा ने भगवान विष्णु को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके यह वरदान मांगा कि उसका पति किसी से भी न मारा जाये । भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया कि जब तक तुम्हारा पतिव्रता धर्म बना रहेगा तब तक तुम्हारे पति को कोई नहीं मार सकता। कोई देवता भी नहीं मार सकता। मैं भी नहीं मार सकता।


जब वृन्दा देवी के पति जलन्धर को इस बात का पता चला, तब उसने अपने आप को अमर समझ कर देवताओं से युद्ध किया और सब देवताओं को हरा दिया।विष्णु भी हार गये। तब जलन्धर को मारना अनिवार्य समझ कर विष्णु भगवान ने छलकपट से जलन्धर का रूप धारण करके वृन्दा देवी का पतिव्रता धर्म भंग किया। उधर मौका पाकर शिवजी ने जलन्धर का वध कर दिया। जब वृन्दा देवी को विष्णु भगवान के छलकपट का पता चला तो उसने विष्णु भगवान को श्राप देकर उन्हें काले पत्थर का सालिगराम बना दिया। यह देखकर सब देवता घबरा गये। उन्होंने वृन्दा देवी से प्रार्थना की कि विष्णु भगवान को उनका असली रूप प्रदान करें।

तब वृन्दा देवी ने विष्णु भगवान को उनका असली रूप प्रदान कर दिया। विष्णु भगवान ने अपने असली रूप में आकर वृन्दा को वरदान दिया कि तुम्हारा अगला जन्म तुलसी का होगा और सब लोग तुम्हारी पूजा करेंगे।  तत्पश्चात् वृन्दा देवी ने अपने प्राण त्याग दिये और जिस जगह उसने अपने प्राण त्यागे वहां पर तुलसी का पौधा उग आया जो कि विष्णु भगवान के वरदान से माँ वृन्दादेवी ने तुलसी के पौधे के रूप में जन्म लिया था। तभी से सब लोग तुलसी की पूजा करते हैं। वृन्दा देवी के नाम पर ही इस स्थान का नाम वृन्दावन पड़ा होगा।

राधा के सोलह नामों में से उन का एक नाम वृन्दा भी था । राधा (वृन्दा) अपने प्रियतम भगवान श्री कृष्ण से मिलने की इच्छा से यहां पर विहार करने के लिये आती थी । इसलिये भी इस स्थान कानाम वृन्दावन पड़ा होगा। वृन्दावन में भगवान श्री कृष्ण अपनी मधुर बंसी की तान सुना कर गोपियों को मोहित किया करते थे और अपनी दिव्य तथा अन्तरंग बाल-लीलायें करते थे। उन्होंने यहीं पर गोपियों का चीर हरण किया था तथा पूर्णमासी की अर्धरात्रि में गोपियों को रास-लीला का परम सुख दिया था। उस रास लीला को देखने के लिये शिव महादेव एक गोपी का रूप धारण करके यहां आये थे और अर्धनारीश्वर कहलाये थे; क्योंकि किसी भी पुरुष को रासलीला में आने की इजाजत नहीं थी। चन्द्रमा भी रासलीला को देखने के लिये रुक गया था, इसलिये वह रात्रि ६ महीने की हो गई थी। चन्द्रमा ने मुग्ध होकर रास मंडल पर अमृत की वर्षा की थी। उसी समय से नव विवाहित जोड़ों में हनीमून मनाने की प्रथा चली।

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वृन्दावन के कण-कण में, गली-कूचों में, खेतों और खलिहानों में बागों और बगीचों में, यमुना के तट पर कृष्ण के प्रेम की मधुर मुरली की तान व्याप्त है जो प्रेमी जनों को आज भी सुनाई देती है और उन्हें आत्म-विभोर कर देती है। जो कोई यहां आकर उस मधुर तान को सुन लेता है, उसका मन यहीं पर रम जाता है
और वह वापिस जाने का नाम नहीं लेता। भारतवासियों की तो बात ही क्या हजारों विदेशी युवक और युवतियां राधा-कृष्णा के प्रेम में रमकर सन्यासी भेष में यहीं पर रहने लगे हैं। कई विदेशी युवतियां राधा तथा मीरा की तरह मतवाली होकर श्रीकृष्ण को वृन्दावन के गली, कूचों, लताओं, कुंजों तथा यमुना के तट पर खोजती फिरती हैं। उन्होंने अपनी सुधबुध तथा घर परिवार को बिसरा दिया है और कृष्ण की दीवानी हो गई हैं।
वृन्दावन की परम् पावन भूमि को पृथ्वी का गुप्त भाग भी कहा जाता है। यहां के कण-कण में रंग उल्लास तथा जीवन रस भरा पड़ा है। अब भी चन्द्रमा पूर्णमासी की रात्रि को यहां पर अमृत की वर्षा करता है । यहां पर सारा दिन ओर सारी रात राधा कृष्ण का कीर्तन चलता रहता है।


वृन्दावन के दर्शनीय मन्दिर (Places to visit in Vrindavan in hindi)

श्रीकृष्ण बलराम मन्दिर (इस्कॉन मंदिर) (vrindavan iskcon in hindi)

वृन्दावन में रमन रेती छटीकरा रोड पर विदेशियों ने श्रीकृष्ण बलराम मन्दिर बनाया है। इसे अंग्रेजों का मन्दिर भी कहा जाता है। यह मन्दिर दस एकड़ भूमि में है और दस एकड़ भूमि में आश्रम है। मन्दिर में प्रवेश करते ही बहुत बड़ा सहन है तथा एक बहुत बड़ा हॉल जैसा बरामदा है। इसमें बाईं तरफ गौर निताई की मूर्ति है। बीच में श्रीकृष्ण बलराम की बहुत सुन्दर मूर्तियाँ हैं और दाईं तरफ राधा-कृष्ण की मूर्तियाँ हैं, उनके साथ ललिता और विसाखा की मूर्तियां हैं। पश्चिम की ओर भक्ति निदान्ता स्वामी की मूर्ति है। प्रातःकाल ६ बजे राधा कृष्ण की आरती होती है। कोई विदेशी हाथ में धूप-दीप लेकर आरती उतारता है, तो कोई घंटी बजाता है, कोई ढोल-मंजीरे बजाता है और कितने ही विदेशी युवक-युवतियाँ, वृद्ध तथा बालक नाच-नाच कर तथा झूम-झूम कर आरती गाते हैं। विदेशियों की ऐसी राधा कृष्ण की भक्ति आश्चर्य चकित करनेवाली है।


मन्दिर के प्रांगण में एक बहुत बड़ा तमाल का वृक्ष है तथा दीवारों पर बहुत सुन्दर तस्वीरें बनाई गई हैं। मन्दिर के पीछे गैस्ट हाउस तथा म्यूजियम है और किताबों की दूकान है। यह मन्दिर तथा गैस्ट हाउस श्री कृष्ण भावना संघ द्वारा बनाया गया है। इस संघ ने भारत में तथा विदेशों में बहुत सारे राधा-कृष्ण मन्दिर बनवाये हैं।

बांके बिहारी जी का मन्दिर (vrindavan banke bihari in hindi)

वृन्दावन में प्राचीन मन्दिरों की गणना में प्रमुख मन्दिर बांके बिहारी जी तथा राधा माधव जी के मन्दिर हैं। श्री ठाकुर बांके बिहारीजी महाराज मन्दिर में राधा कृष्ण की प्राचीन मूर्तियां हैं। यह मन्दिर स्वामी श्रीहरिदास जी द्वारा बनवाया गया। यह उनके वंशजों का निजी मन्दिर है । इस मन्दिर में प्रातः ६ बजे से १२ बजे तक राजभोग और रात को ६ बजे से साढ़े ६ बजे तक झांकियां होती है। श्री बिहारी जी के चरण दर्शन अक्षय तीज को होते हैं और सावन के महीने मे सोने के हिन्डोले के दर्शन होते हैं। इस मन्दिर की मूर्ति बहुत चमत्कारी है।

श्री जानकी वल्लभ भगवान का मन्दिर (vrindavan temples in hindi)

इस मन्दिर का निर्माण श्री वेदान्तदेशिक आश्रम के द्वारा केसी घाट पर हुआ था और इसकी स्थापना परमहंस स्वामी भगवान दास जी आचार्य द्वारा हुई थी। यह मन्दिर रामानुज की बड़कले शाखा से सम्बन्धित है। इस मन्दिर में श्रीराम, लक्ष्मण तथा सीता माता की मूर्तियां हैं। मन्दिर में संगमरमर लगाया गया है और इसका शिखर बहुत विशाल है।

श्री गोबिन्द जी का मन्दिर (vrindavan mandir in hindi)

यह विशाल मन्दिर लाल पत्थरों का बना हुआ है और अति प्राचीन मन्दिर है। इसे जयपुर के महाराज मानसिंह ने बनवाया था। औरंगजेब के समय में यहां की मूर्ति जयपुर पहुंचा दी गई थी। वहां पर आज भी गोबिन्द जी के नाम से प्रमुख मन्दिर है। कहते हैं कि गोबिन्द जी का मन्दिर सात मंजिल का था। उपर की चार मन्जिल बादशाही सेना द्वारा गिरा दी गई थी। अब यह मन्दिर ३ मन्जिल का है और सरकार के पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। इस मन्दिर के पीछे गोबिन्द जी का नया मन्दिर बनाया गया है । मन्दिर में गोबिन्द जी की बहुत सुन्दर मूर्ति है।

रंग जी का मंदिर

यह मन्दिर सन् १८५२ में सेठ लक्ष्मी चन्द के भाई राधा कृष्ण और गोविन्ददास ने बनवाया था। इसके बनने में ७ साल लग गये थे। इस मन्दिर के प्रांगण में ६० फुट ऊँचा सोने का खम्बा है । मन्दिर के सात परकोटे हैं तथा शिखर बहुत भव्य है । मन्दिर में बहुत सुन्दर मूर्तियां हैं। इस मन्दिर में चैत्र में रथ का मेला, श्रावण में हिंडोले, रक्षा बंधन पर गज-ग्राह भादों में जन्माष्टमी तथा लढे का मेला तथा पौष में बैकुण्ठ मेला लगता है।

लाला बाबू का मन्दिर

यह मन्दिर मुर्शीदाबाद के ज़मीदार श्री कृष्ण चन्द्र ने सम्मत् १८६६ में बनवाया था। श्री कृष्ण चन्द्र को ही लाला बाबू कहा जाता है। मन्दिर में देवमूर्ति बहुत सुन्दर है।

काँच का मन्दिर

रंग जी मन्दिर के पूर्वी दरवाजे पर बना हुआ विजावर महाराज का शीशे का बना मन्दिर देखने योग्य है।

गोदा मन्दिर

इस मन्दिर में देवी देवताओं, ऋषि मुनियों तथा संत-महापुरुषों की सैंकड़ों मूर्तियां देखने योग्य हैं।

राधा गोविन्द जी का मन्दिर

यह मन्दिर सन् १९६० में ग्वालियर के महाराज जियाजी राव सिंधिया ने बनवाया था। यह ब्रह्मचारी मन्दिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसमें ब्रह्मचारी जी रहते हैं।

राधा रमण जी का मन्दिर

इस मन्दिर में गुसाइयों की पूजा होती है और बहुत सारे बंगाली शिष्य रहते हैं।

गोपेश्वर मन्दिर

जब श्रीकृष्ण ने रास लीला की थी तो उसमें महादेव जी गोपी का रूप बना कर उसका आनन्द लेने आये थे। श्रीकृष्ण ने उनको पहचान कर गोपेश्वर नाम से पुकारा था और अपने पास बुलाया था।

युगल किशोर जी का मन्दिर

यह मन्दिर जहांगीर बादशाह की अमलदारी में ठाकुर नानकरण चौहान ने बनवाया था। इस मन्दिर का जगमोहन ३२ वर्ग फुट है। यह मन्दिर केसीघाट पर बना हुआ है।

शाह बिहारी लाल मन्दिर

यह मन्दिर लखनऊ के शाह बिहारी लाल के पुत्रशाह कुन्दन लाल ने यमुना तट पर रेतिया बाजार में बनाया था। इस मन्दिर का नाम ललित कुंज है । इसे शाहजी का मन्दिर तथा टेढ़े खम्बों वाला मन्दिर भी कहा जाता है।

सवा मन सालिग राम जी का मन्दिर

यह मन्दिर अधिक बड़ा नहीं है लेकिन इसमें सवा मन के सालिग राम की मूर्ति देखने योग्य है । यह मन्दिर लोई बाजार में है।

मदन मोहन जी का मन्दिर

यह मन्दिर काली देह के निकट द्वादश टीले पर है। इस मन्दिर को रूप सनातम गोस्वामी ने बनवाया । मथुरा के एक चौबे श्री मदन मोहन जी ने उनको एक मूर्ति सम्मत १२२६ में माघ शुक्ल तृतिया को दी थी। गोस्वामी ने उसी मूर्ति को यहां प्रतिष्ठापित किया था और स्वयम् एक मढ़ी बनाकर रहने लगे थे।

इन मन्दिरों के अतिरिक्त वृन्दावन में अनेक दर्शनीय मन्दिर हैं जिन में पागलबाबा का मन्दिर, अक्रूर मन्दिर, श्री अनन्तबांके बिहारी मन्दिर, श्री जी मन्दिर, कानपुर वाला मन्दिर, मानस मन्दिर, गोपीनाथ जी का मन्दिर, मीरां बाई का मन्दिर, रसिक बिहारी मन्दिर, गोरे दाउ जी का मन्दिर, अष्ट सखी मन्दिर तथा नन्द भवन और आनन्द वृन्दावन देखने योग्य मन्दिर है।


वृन्दावन के प्रसिद्ध घाट (vrindavan places to visit in hindi)


वृन्दावन में श्रीयमुना के तट पर अनेक घाट हैं। महन्त घाट, रामगोपाल घाट, कालीदेह घाट, गोपाल घाट, नाभा घाट, प्रस्कंदनघाट, सूर्य घाट, कड़िया घाट, मुगल घाट, धूसर घाट, नया घाट, श्री जी घाट, शृंगारघाट, गंगामोहन घाट, गोविन्द घाट, चीर घाट, केसी घाट, किशोरी घाट, पांडा घाट, हनुमान घाट, इमलीतला घाट आदि घाट प्रमुख हैं।

श्रीवराहघाट

वृन्दावन के दक्षिण-पश्चिम दिशा में प्राचीन यमुनाजी के तट पर श्रीवराहघाट अवस्थित है। तट के ऊपर भी श्रीवराहदेव विराजमान हैं। पास ही श्रीगौतम मुनि का आश्रम है।

कालीय दमन घाट

यह वराहघाट से लगभग आधे मील उत्तर में प्राचीन यमुना के तट पर अवस्थित है। कालीय को दमन कर तट भूमि में पहुँचने पर श्रीकृष्ण को ब्रजराज नन्द और ब्रजेश्वरी श्री यशोदा ने अपने आसुँओं से तर-बतर कर दिया तथा उनके सारे अंगो में इस प्रकार देखने लगे कि 'मेरे लाला को कहीं कोई चोट तो नहीं पहुँची है।' महाराज नन्द ने कृष्ण की मंगल कामना से ब्राह्मणों को अनेकानेक गायों का यहीं पर दान किया था।

सूर्यघाट

इसका नामान्तर आदित्यघाट भी है। गोपालघाट के उत्तर में यह घाट अवस्थित है। घाट के ऊपर वाले टीले को आदित्य टीला कहते हैं। इसी टीले के ऊपर श्रीसनातन गोस्वामी के प्राणदेवता श्री मदन मोहन जी का मन्दिर है। यहीं पर प्रस्कन्दन तीर्थ भी है।

युगलघाट

सूर्य घाट के उत्तर में युगलघाट अवस्थित है। इस घाट के ऊपर श्री युगलबिहारी का प्राचीन मन्दिर शिखरविहीन अवस्था में पड़ा हुआ है। केशी घाट के निकट एक और भी जुगल किशोर का मन्दिर है। वह भी इसी प्रकार शिखरविहीन अवस्था में पड़ा हुआ है।

श्रीबिहारघाट

युगलघाट के उत्तर में श्रीबिहारघाट अवस्थित है। इस घाट पर श्रीराधाकृष्ण युगल स्नान, जल विहार आदि क्रीड़ाएँ करते थे।

श्रीआंधेरघाट 

युगलघाट के उत्तर में यह घाट अवस्थित हैं। इस घाट के उपवन में कृष्ण और गोपियाँ आँखमुदौवल की लीला करते थे। अर्थात् गोपियों के अपने करपल्लवों से अपने नेत्रों को ढक लेने पर श्रीकृष्ण आस-पास कहीं छिप जाते और गोपियाँ उन्हें ढूँढ़ती थीं। कभी श्रीकिशोरी जी इसी प्रकार छिप जातीं और सभी उनको ढूँढ़ते थे।

इमलीतला घाट 

आंधेरघाट के उत्तर में इमलीघाट अवस्थित है। यहीं पर श्रीकृष्ण के समसामयिक इमली वृक्ष के नीचे महाप्रभु श्रीचैतन्य देव अपने वृन्दावन वास काल में प्रेमाविष्ट होकर हरिनाम करते थे। इसलिए इसको गौरांगघाट भी कहते हैं।

श्रृंगारघाट

इमलीतला घाट से कुछ पूर्व दिशा में यमुना तट पर श्रृंगारघाट अवस्थित है। यहीं बैठकर श्रीकृष्ण ने मानिनी श्रीराधिका का श्रृंगार किया था। वृन्दावन भ्रमण के समय श्रीनित्यानन्द प्रभुने इस घाट में स्नान किया था तथा कुछ दिनों तक इसी घाट के ऊपर श्रृंगारवट पर निवास किया था।

श्रीगोविन्दघाट

श्रृंगारघाट के पास ही उत्तर में यह घाट अवस्थित है। श्रीरासमण्डल से अन्तर्धान होने पर श्रीकृष्ण पुन: यहीं पर गोपियों के सामने आविर्भूत हुये थे।

चीर घाट

श्रीकृष्ण स्नान करती हुईं गोपिकुमारियों के वस्त्रों को लेकर यहीं क़दम्ब वृक्ष के ऊपर चढ़ गये थे। चीर का तात्पर्य वस्त्र से है। पास ही कृष्ण ने केशी दैत्य का वध करने के पश्चात यहीं पर बैठकर विश्राम किया था। इसलिए इस घाटका दूसरा नाम चैन या चयनघाट भी है। इसके निकट ही झाडूमण्डल दर्शनीय है।

श्रीभ्रमरघाट

चीरघाट के उत्तर में यह घाट स्थित है। जब किशोर-किशोरी यहाँ क्रीड़ा विलास करते थे, उस समय दोनों के अंग सौरभ से भँवरे उन्मत्त होकर गुंजार करने लगते थे। भ्रमरों के कारण इस घाट का नाम भ्रमरघाट है।

श्रीकेशीघाट

श्रीवृन्दावन के उत्तर-पश्चिम दिशा में तथा भ्रमरघाट के उत्तर में यह प्रसिद्ध घाट विराजमान है।

धीरसमीरघाट

श्रीचीर घाट वृन्दावन की उत्तर-दिशा में केशीघाट से पूर्व दिशा में पास ही धीरसमीरघाट है। श्रीराधाकृष्ण युगल का विहार देखकर उनकी सेवा के लिए समीर भी सुशीतल होकर धीरे-धीरे प्रवाहित होने लगा था।

श्रीराधाबागघाट

वृन्दावन के पूर्व में यह घाट अवस्थित है।

श्रीपानीघाट

इसी घाट से गोपियों ने यमुना को पैदल पारकर महर्षि दुर्वासा को सुस्वादु अन्न भोजन कराया था।

आदिबद्रीघाट

पानीघाट से कुछ दक्षिण में यह घाट अवस्थित है। यहाँ श्रीकृष्ण ने गोपियों को आदिबद्री नारायण का दर्शन कराया था।

श्रीराजघाट

आदि-बद्रीघाट के दक्षिण में तथा वृन्दावन की दक्षिण-पूर्व दिशा में प्राचीन यमुना के तट पर राजघाट है। यहाँ कृष्ण नाविक बनकर सखियों के साथ श्री राधिका को यमुना पार कराते थे। यमुना के बीच में कौतुकी कृष्ण नाना प्रकार के बहाने बनाकर जब विलम्ब करने लगते, उस समय गोपियाँ महाराजा कंस का भय दिखलाकर उन्हें शीघ्र यमुना पार करने के लिए कहती थीं। इसलिए इसका नाम राजघाट प्रसिद्ध है।

वृन्दावन के धार्मिक स्थान (vrindavan sightseeing in hindi)


कालीदेह

यहां पर कालीनाग रहता था। भगवान श्रीकृष्ण उसका मर्दनकरने के लिये कदम के पेड़ से काली देह में कूद थे।

द्वादश आदित्य टीला

काली नाग का मर्दन करके श्रीकृष्ण इस टीलेपर आये थे और सर्दी के मार कांपने लगे थे, तब सूर्य ने द्वादश कला धारण करके उनकी सर्दी दूर की थी।

श्रृंगारवन

श्रीकृष्ण के सखाओं ने यहां पर श्रीकृष्ण का शृंगार कियाथा।

सेवा कुंज

यहाँ पर भगवान श्रीकृष्ण रात्रि में राधा के साथ विहार करतेथे। यहां पर रात को रहना मना है।

चीर घाट

यहाँ पर श्रीकृष्ण ने यमुना में नग्न स्नान करती हुई गोपियों के चीर हरण किये थे।

रास मंडल

यहाँ पर श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ हनीमून मनाया थातथा उन को महारास लीला का परम् सुख दिया था।

वंशी वट

श्रीकृष्ण इस वृक्ष पर चढ़ कर गोपियों को रास लीला केलिये बुलाने के लिये बंसी बजाते थे और गोपियाँ बंसी की तान पर अपनी  सुध बुध खोकर चली आती थी।

वेणु कूप

भगवान श्रीकृष्ण ने राधा की प्यास बुझाने के लिये अपनीबांसुरी सेयह कुआं खोदा था।

दावानलकुंड

श्रीकृष्ण ने यहाँ पर अग्नि का पान किया था।

ज्ञान गुदड़ी

जब श्रीकृष्ण कंस को मार कर मथुरा में बस गये थे, तब उन्होंने अपने मित्र ऊधव को गोपियों को ज्ञान सिखाने के लिये भेजा था। ऊधव की गोपियों के साथ इसी स्थान पर ज्ञान चर्चा हुई थी और वह गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम देख कर अपना सब ज्ञान भूल गये थे, और उलटा गोपियों से ज्ञान सीखकर वापिस श्रीकृष्ण के पास मथुरा में गये थे।

राधा बाग

यहाँ पर कात्यायनी देवी का भव्य मन्दिर है।

इमली तला

जब चेतन महाप्रभु वृन्दावन पधारे थे, तब इसी इमली के पेड़ के नीचे बैठे थे।

टटिया स्थान

यह हरिदास जी की शिष्य परम्परा का स्थान है।

निधि वन 

यहाँ पर श्रीकृष्ण और राधा विहार किया करते थे। यहीं पर स्वामी हरिदास जी निवास करते थे। उनको यहीं पर बांके बिहारी जी की मूर्ति प्राप्त हुई थी जो इस मन्दिर में है। हरिदास जी की समाधि भी यहीं पर है।

धीर समीर

भगवान श्रीकृष्ण यहां पर गोप-गोपियों को अपनी लीलाओं का अलौकिक सुख देते थे।

इनके अतिरिक्त राधा बावड़ी, बेल वन, मानसरोवर, महाप्रभुजी की बैठक, स्वामी हरिदास जी को बैटक, चौसठ महन्तों की समाधि, राम बाग, यमुना मन्दिर, वन चन्द्र जी का डोल तथा टोपी वाली कुंज देखने योग्य धार्मिक स्थान हैं।

वृंदावन घूमने का सबसे अच्छा समय (Best time to visit Vrindavan in Hindi)

वृंदावन जाने का सबसे सही समय नवंबर और मार्च के महीने के बीच का है। यह वृंदावन की यात्रा का सबसे अच्छा समय है क्योंकि तापमान गिरना शुरू हो जाता है। कई बार सर्दियों का तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है, लेकिन ज्यादातर 7-8 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है। भले ही जन्माष्टमी से राधाष्टमी, होली से लेकर गोवर्धन पूजा और गुरु पूर्णिमा तक, भक्त और पर्यटक साल भर वृंदावन में ही रहते हैं, लेकिन गर्मियों के दौरान यहां यात्रा करना उचित नहीं है, क्योंकि तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक और कभी-कभी इससे भी अधिक होता है।

प्रमुख शहरों से वृंदावन के लिए दूरी (Distance of Vrindavan from major cities)

दिल्ली से वृंदावन की दूरी लगभग 144 किलोमीटर (सड़क मार्ग से लगभग 4 घंटे) है।
कोलकाता से वृंदावन की दूरी लगभग 1327 किलोमीटर (सड़क से लगभग 19 घंटे) है।
लखनऊ से वृंदावन की दूरी लगभग 371 किलोमीटर (सड़क से लगभग 6 घंटे) है।
मुंबई से वृंदावन की दूरी लगभग 1285 किलोमीटर (सड़क से लगभग 22 घंटे) है।
वृंदावन से चंडीगढ़ की दूरी लगभग 400 किलोमीटर (सड़क से लगभग ८ घंटे) है।
गाजियाबाद से वृंदावन की दूरी लगभग 153 किलोमीटर (सड़क से लगभग 3 घंटे) है।
हैदराबाद से वृंदावन की दूरी वृंदावन की दूरी लगभग 1391 किलोमीटर (सड़क से लगभग 23 घंटे) है।
पुणे से वृंदावन की दूरी लगभग 1304 किलोमीटर (सड़क से लगभग 23 घंटे) है।
चेन्नई से वृंदावन की दूरी लगभग 2037 किलोमीटर (सड़क से लगभग 34 घंटे) है।
बैंगलोर से वृंदावन की दूरी लगभग 1975 किलोमीटर (सड़क से लगभग 30 घंटे) है।
इलाहाबाद से वृंदावन की दूरी लगभग 528 किलोमीटर (लगभग 7 घंटे) है।
जयपुर से वृंदावन की दूरी लगभग 231 किलोमीटर (सड़क मार्ग से लगभग 4 घंटे) है।

वृंदावन कैसे पहुँचे (How to reach Vrindavan in hindi)

प्रसिद्ध तीर्थ स्थल होने के नाते, वृंदावन मथुरा (10 किमी दूर) के माध्यम से भारत के विभिन्न स्थलों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। वृंदावन जाने वाले ज्यादातर लोग मथुरा तक रेल या सड़क से यात्रा करते हैं और बसों और ऑटो के जरिए वृंदावन के बाकी हिस्सों को कवर करते हैं।

फ्लाइट से वृंदावन कैसे पहुंचे (How to reach Vrindavan by flight in Hindi)

वृंदावन का अपना कोई हवाई अड्डा नहीं है। वृंदावन का निकटतम हवाई अड्डा आगरा में खेरिया हवाई अड्डा है जो लगभग 55 किमी दूर स्थित है। आगरा एयरपोर्ट सीमित उड़ानों के माध्यम से भारत के प्रमुख शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, वाराणसी से जुड़ा है।

वृंदावन का निकटतम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा नई दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो लगभग 130 किमी दूर स्थित है।

हवाई अड्डे से वृंदावन की यात्रा के लिए, प्री-पेड टैक्सी सबसे अच्छा विकल्प हैं। यदि वैकल्पिक मोड की तलाश की जाए, तो आगरा शहर से वृंदावन के लिए बस मिल सकती है।
नजदीकी एयरपोर्ट: आगरा एयरपोर्ट (AGR) - वृंदावन से 54 कि.मी.


सड़क मार्ग से वृंदावन कैसे पहुंचे (How to reach Vrindavan by road in Hindi)

वृंदावन सड़क द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है, खासकर उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहरों से। चूंकि अधिकांश सड़कें अच्छी हैं, इसलिए वृंदावन की सड़क यात्रा करने योग्य है। यह एक आरामदायक हालांकि वृंदावन की यात्रा के लिए परिवहन का महंगा साधन है।

ट्रेन से वृंदावन कैसे पहुंचे (How to reach Vrindavan by Train in Hindi)

वृंदावन से जुड़ा सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन मथुरा रेलवे स्टेशन है। उत्तरी और दक्षिण-पश्चिमी रेलवे लाइन पर गिरते हुए, यह नियमित ट्रेनों के माध्यम से देश के सभी हिस्सों से जुड़ा हुआ है। मथुरा रेलवे स्टेशन से वृंदावन तक के ऑटो और टैक्सी आसानी से मिल सकते हैं।

बस से वृंदावन कैसे पहुंचे (How to reach Vrindavan by bus in Hindi)

कोई सीधा बस मार्ग नहीं होने के कारण, वृंदावन मथुरा बस स्टैंड के माध्यम से राज्य और देश के विभिन्न हिस्सों से जुड़ा हुआ है, जो लगभग 12 किमी दूर स्थित है। उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (UPSRTC) राज्य के अधिकांश प्रमुख शहरों से मथुरा के लिए नियमित बसें चलाता है। मथुरा जाने और / या जाने वाली अधिकांश बसें सुबह या रात के समय में आती हैं।

वृंदावन से प्रतिदिन 9 सीधी बसें सुबह 9:30 बजे और दोपहर 3:00 बजे चलती हैं। बसें दिल्ली के सराय काले खान अंतरराज्यीय बस टर्मिनल से चलती हैं, और यात्रियों को छटीकरा रोड पर छोड़ती हैं जो वृंदावन शहर का मुख्य प्रवेश मार्ग है। यहां से ऑटो या टैक्सी लेकर आसानी से वृंदावन पहुंचा जा सकता है।

वृंदावन में स्थानीय परिवहन (Local transport in Vrindavan)

चूंकि वृंदावन बहुत बड़ा शहर नहीं है, इसलिए ई-रिक्शा या ऑटो के माध्यम से सभी मंदिरों तक जाना बहुत सुविधाजनक है। एक-दूसरे के पास स्थित बहुत सारे मंदिरों को पैदल भी आसानी से देखा जा सकता है।


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