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10 famous Hanuman temples of India in Hindi

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हनुमानजी के 10  सबसे प्रसिद्द मंदिर (10 famous Hanuman temples of India in Hindi)

हनुमान (hanuman) भारत के सबसे लोकप्रिय देवताओं में से एक हैं। वे शिवजी के ११वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी (hanuman ji)  का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है। आज के इस आलेख में हम भर में स्थित हनुमान जी के 10  सबसे प्रसिद्द मंदिरों (10 famous hanuman temple in india) की चर्चा करेंगे।

1.  दांडी हनुमान मंदिर, द्वारका, गुजरात (Bet Dwarka Dandi Hanuman Temple Gujarat in Hindi)

द्वारका से चार मील की दूरी पर बेटद्वारका में दांडी हनुमान मंदिर स्थित है। इस स्थान पर मकर ध्वज के साथ में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित है। कहते हैं कि पहले मकरध्वज की मूर्ति छोटी थी, परंतु अब दोनों मूर्तियां एक सी ऊंची हो गई हैं। इस मंदिर को दांडी हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह वही स्थान है, जहां पहली बार हनुमानजी अपने पुत्र मकरध्वज से मिले थे।

मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही सामने हनुमान पुत्र मकरध्वज की प्रतिमा है। वहीं पास में हनुमानजी की प्रतिमा भी स्थापित है। इन दोनों प्रतिमाओं की विशेषता यह है कि इन दोनों के हाथों कोई भी शस्त्र नहीं है और ये आनंदित मुद्रा में है। यह मंदिर पांच सौ वर्ष पुराना है। भारत में यह पहला मंदिर है जहाँ हनुमानजी और मकरध्वज (पिता और पुत्र) का मिलन दिखाया गया है।

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मान्यता है कि जब हनुमानजी अहिरावण के कब्जे से श्रीराम-लक्ष्मण को छुड़ाने के लिए आए, तब उनका मकरध्वज के साथ घोर युद्ध हुआ। कुछ धर्म ग्रंथों में मकरध्वज को हनुमानजी का पुत्र बताया गया है, जिसका जन्म हनुमानजी के पसीने द्वारा एक मछली से हुआ था। हिंदू धर्म को मानने वाले ये बात बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि श्रीहनुमानजी बालब्रह्मचारी थे।

लेकिन बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि धर्म शास्त्रों में हनुमानजी के एक पुत्र का वर्णन भी मिलता है। शास्त्रों में हनुमानजी के इस पुत्र का नाम मकरध्वज बताया गया है। भारत में दो ऐसे मंदिर भी है जहां हनुमानजी की पूजा उनके पुत्र मकरध्वज के साथ की जाती है। इन मंदिरों की कई विशेषताएं हैं जो इसे खास बनाती हैं।

मकरध्वज के जन्म की पौराणिक कथा इस प्रकार है।  धर्म शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी सीता की खोज में लंका पहुंचे और मेघनाद द्वारा पकड़े जाने पर उन्हें रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया। तब रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवा दी और हनुमान ने जलती हुई पूंछ से पूरी लंका जला दी। जलती हुई पूंछ की वजह से हनुमानजी को तीव्र वेदना हो रही थी, जिसे शांत करने के लिए वे समुद्र के जल से अपनी पूंछ की अग्नि को शांत करने पहुंचे।

उस समय उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया था। उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई और उससे उसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम पड़ा “मकरध्वज”। मकरध्वज भी हनुमानजी के समान ही महान पराक्रमी और तेजस्वी था। मकरध्वज को अहिरावण द्वारा पाताल लोक का द्वारपाल नियुक्त किया गया था। जब अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण को देवी के समक्ष बलि चढ़ाने के लिए अपनी माया के बल पर पाताल ले आया था, तब श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराने के लिए हनुमान पाताल लोक पहुंचे। वहां उनकी भेंट मकरध्वज से हुई। तब हनुमानजी और मकरध्वज में घोर युद्ध हुआ। अंत में हनुमानजी ने मकरध्वज को परास्त कर उसी की पूंछ से उसे बांध दिया। मकरध्वज ने अपनी उत्पत्ति की कथा हनुमान को सुनाई। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया। भगवान श्रीराम ने मकरध्वज को पाताल लोक का अधिपति नियुक्त करते हुए उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उनकी स्मृति में यह मूर्ति स्थापित है। मकरध्वज व हनुमानजी का यह पहला मंदिर गुजरात के बेटद्वारिका में स्थित है। यह स्थान मुख्य द्वारिका से दो किलो मीटर अंदर की ओर है।

2. बालाजी हनुमान मंदिर, मेहंदीपुर (Mehendipur Balaji Temple in Hindi)


मेहंदीपुर बालाजी मंदिर उत्तर भारत में शायद सबसे प्रसिद्ध हनुमान मंदिर है। यहाँ भगवान हनुमान को बालाजी के रूप में पूजा जाता है। मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर राजस्थान के तहसील (सिकराय) में स्थित है। यह स्थान दो पहाड़ियों के बीच बसा हुआ बहुत आकर्षक दिखाई देता है। यहाँ की शुद्ध जलवायु और पवित्र वातावरण मन को बहुत आनंद प्रदान करती है। यहाँ तीन देवों की प्रधानता है। श्री बालाजी महाराज, श्री प्रेतराज सरकार, और श्री कोतवाल (भैरव)। यह तीन देव यहाँ आज से लगभग एक हजार वर्ष पूर्व प्रकट हुए थे। वास्तव में यहाँ स्थित बालाजी की मूर्त्ति को अलग से किसी कलाकार ने गढ़ कर नहीं बनाया है। बल्कि यह तो पर्वत का ही अंग है और यह समूचा पर्वत ही मानों उसका शरीर है। इसी मूर्त्ति के चरणों में एक छोटी-सी कुण्डी है, जिसका जल कभी समाप्त ही नहीं होता। एक और रहस्य यह है कि बालाजी महाराज की बायीं ओर छाती के नीचे से एक बारीक जलधारा निरन्तर बहती रहती है, जो पर्याप्त चोला चढ़ जाने पर भी बंद नहीं होती।

अब जानते हैं बालाजी मंदिर में स्थापित तीनों देवों की स्थापना की कहानी। विक्रमी-सम्वत् १९७९ में श्री महाराज ने अपना चोला बदला। उतारे हुए चोले को गाड़ियों में भरकर श्री गंगा में प्रवाहित करने हेतु बहुत से श्रद्धालु चल दिये। चोले को लेकर जब मंडावर रेलवे स्टेशन पर पहुँचे, तो रेलवे अधिकारियों ने चोले को सामान समझकर सामान-शुल्क लेने के लिए उस चोले को तौलना चाहा। बहुत प्रयास के बावजूद वे छोले को तौलने में असमर्थ रहे। चोला तौलने के क्रम में वजन कभी एक मन बढ़ जाता तो कभी एक मन घट जाता। अन्तत: रेलवे अधिकारी ने हार मान लिया, और चोले को सम्मान सहित गंगा जी को समर्पित कर दिया गया। उस समय हवन, ब्राह्मण भोजन एवं धर्म ग्रन्थों का पारायण हुआ और नये चोले में एक नयी ज्योति उत्पन्न हुई, जिसने भारत के कोने-कोने में प्रकाश फैला दिया।


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बालाजी मंदिर की खासियत है कि यहां बालाजी को लड्डू, प्रेतराज को चावल और भैरों को उड़द का प्रसाद चढ़ाया जाता है। कहते हैं कि बालाजी के प्रसाद के दो लड्डू खाते ही भूत-प्रेत से पीड़ित व्यक्ति के अंदर मौजूद भूत प्रेत छटपटाने लगता है और अजब-गजब हरकतें करने लगता है। यहां पर चढ़ने वाले प्रसाद को दर्खावस्त और अर्जी कहते हैं। मंदिर में दर्खावस्त का प्रसाद लगने के बाद वहां से तुरंत निकलना होता है, जबकि अर्जी का प्रसाद लेते समय उसे पीछे की ओर फेंकना होता है। इस प्रक्रिया में प्रसाद फेंकते समय पीछे की ओर नहीं देखना चाहिए। आमतौर पर मंदिर में भगवान के दर्शन करने के बाद लोग प्रसाद लेकर घर आते हैं। लेकिन मेंहदीपुर बालाजी मंदिर से मेहंदीपुर में चढ़ाया गया प्रसाद यहीं पूर्ण कर जाएं। इसे घर पर ले जाने का निषेध है। खासतौर से जो लोग प्रेतबाधा से परेशान हैं, उन्हें और उनके परिजनों को कोई भी मीठी चीज और प्रसाद आदि साथ लेकर नहीं जाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार सुगंधित वस्तुएं और मिठाई आदि नकारात्मक शक्तियों को अधिक आकर्षित करती हैं।

मेहंदीपुर बालाजी जाने से पहले जरुर रखें इन बातों का ध्यान

मेंहदीपुर बाला जी के दर्शन करने वालों के लिए कुछ कड़े नियम होते हैं। यहां आने से कम से कम एक सप्ताह पहले लहसुन, प्याज, अण्डा, मांस, शराब का सेवन बंद करना होता है। इसके अलावा जब भी बालाजी धाम जाएं, तो सुबह और शाम की आरती में शामिल होकर आरती के छीटें लेने चाहिए। यह रोग मुक्ति एवं प्रेतबाधा से रक्षा करने वाला होता है।

3. नमक्कल अंजनेयार मंदिर, तमिलनाडु (Namakkal Anjaneyar temple, Tamilnadu in hindi)

नमक्कल अंजनेयार मंदिर दक्षिण भारत में भगवान हनुमान का एक लोकप्रिय मंदिर है। यह तमिल भारत में भगवान हनुमान की सबसे ऊंची मूर्तियों में से एक है। मंदिर में अंजनेयार और नरसिंह के अलग-अलग मंदिर भी हैं। इस मंदिर का निर्माण वास्तुकला के द्रविड़ियन शैली में किया गया है। अंजनेर अर्थात हनुमान जी की मूर्ति अट्ठारह फीट ऊँची हैं जो भारत में हनुमान की सबसे ऊंची मूर्तियों में से एक है। इस मंदिर की बहुत मान्यता है। भक्त साल भर यहां आकर भगवान हनुमान का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं।


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इस मंदिर में विशाल हनुमान की मूर्ति एक ही पत्थर से स्थापित की गई है। भगवान हनुमान अपने हाथों में एक जपमाला के साथ खुले आसमान के नीचे पूजा करते हुए दिखाई देते हैं। अंजनियर मंदिर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए एक देखने योग्य स्थान है। लगभग डेढ़ हजार साल पुराना, यह प्राचीन मंदिर नमक्कल किले के नीचे स्थित है। यह नृसिंह मंदिर के सन्मुख लगभग सौ मीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर में स्थित भगवान अंजनियर की मूर्ति इसका मुख्य आकर्षण है, यह मूर्ति लगभग अट्ठारह फुट ऊंची है। यह मूर्ति कुछ इस तरह स्थापित की गई है कि भगवान अंजनियर का मुख भगवान नृसिंह की ओर है। यह माना जाता है कि प्रभु अंजनियर की प्रतिमा किले के एक अभिभावक के रूप में कार्य करती है और दुश्मनों के आक्रमण से रक्षा करती है।
इस मंदिर में भगवान हनुमान के लिए कोई छत नहीं है। श्री नमक्कल अंजनेयार श्री नरसिंह स्वामी का सम्मान करते हुए, खुले आसमान के नीचे खड़े चट्टान के पश्चिमी भाग में अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

4. संकट मोचन हनुमान मंदिर, वाराणसी (Sankatmochan Hanuman Mandir, Varanasi in Hindi)


संकट मोचन हनुमान मंदिर वाराणसी में स्थित है। मंदिर को भारत में सबसे पवित्र हनुमान मंदिरों में से एक माना जाता है। संकट मोचन का अर्थ है परेशानियों अथवा दुखों को हरने वाला। इस मंदिर की स्थापना बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक श्री मदन मोहन मालवीय जी द्वारा उन्नीस सौ  ई० में हुई थी। यहाँ हनुमान जयंती बड़े धूमधाम से मनायी जाती है। इस दौरान एक विशेष शोभा यात्रा निकाली जाती है, जो दुर्गाकुंड से सटे ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर से लेकर संकट मोचन तक चलायी जाती है। भगवान हनुमान को प्रसाद के रूप में शुद्ध घी के बेसन के लड्डू चढ़ाये जाते हैं। भगवान हनुमान के गले में गेंदे ऐवं तुलसी की माला सुशोभित रहती हैं। इस मंदिर में भगवान हनुमान की मूर्ति की स्थापना इस प्रकार हुई हैं कि वह भगवान राम की ओर ही देख रहे हैं। ऐवं श्री राम चन्द्र जी के ठीक सीध में संकट मोचन महराज का विग्रह है, जिनकी वे निःस्वार्थ श्रद्धा से पूजा किया करते थे। भगवान हनुमान की मूर्ति की विशेषता यह भी है कि मूर्ति मिट्टी की बनी है। संकट मोचन महराज कि मूर्ति के हृदय के ठीक सीध में श्री राम लला की मूर्ति विद्यमान है। ऐसा प्रतीत होता है संकट मोचन महराज के हृदय में श्री राम सीता जी विराज मान है। मंदिर के प्रांगण में एक अति प्राचीन कूआँ है, जो संत तुलसीदास जी के समय का कहा जाता है। श्रद्धालु इस कूप का शीतल जल ग्रहण करते हैं।


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माना जाता हैं कि इस मंदिर की स्थापना वही हुईं हैं, जहाँ महाकवि तुलसीदास को पहली बार हनुमान का स्वप्न आया था। संकट मोचन मंदिर की स्थापना कवि तुलसीदास ने की थी। वे वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अवधी संस्करण रामचरितमानस के लेखक थे। संत तुलसी दास जी के अंतिम दिनों में अपने बाह ( भुजाओं) के असहनिय दर्द की अवस्था में संकट मोचन महराज के समक्ष " हनुमान बाहुक " की रचना किया था । कहा जाता हैं कि मंदिर में नियमित रूप से आगंतुकों पर भगवान हनुमान की विशेष कृपा होती हैं। हर मंगलवार और शनिवार, हज़ारों की तादाद में लोग भगवान हनुमान को पूजा अर्चना अर्पित करने के लिए कतार में खड़े रहते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार भगवान हनुमान मनुष्यों को शनि गृह के क्रोध से बचते हैं। जिन लोगों की कुंडलियो में शनि गलत स्थान पर स्थित होता हैं, वे विशेष रूप से ज्योतिषीय उपचार के लिए इस मंदिर में आते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान हनुमान सूर्य को फल समझ कर निगल गए थे, तत्पश्चात देवी देवताओं ने उनसे बहुत याचना कर सूर्य को बाहर निकालने का आग्रह किया। कुछ ज्योतिषियों  का मानना हैं कि हनुमान की पूजा करने से मंगल ऐवं शनि ग्रह के बुरे प्रभाव अथवा मानव पर अन्य किसी और ग्रह की वजह से बुरे प्रभाव को बेअसर किया जा सकता है।

5. जाखू मंदिर, शिमला (Jakhoo Hanuman Mandir, Shimla in Hindi) 


शिमला का जाखू पीठ हिमाचल प्रदेश का सबसे प्रसिद्ध हनुमान मंदिर है। हजारों बंदरों से घिरा यह मंदिर आठ हजार एक सौ फीट ऊंचाई पर जाखू पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ भगवान हनुमान की 108 फीट ऊंची मूर्ति है। यहाँ से बर्फीली चोटियों, घाटियों और शिमला शहर का सुंदर और मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। भगवान हनुमान को समर्पित यह धार्मिक केंद्र 'रिज' के निकट स्थित है। यहाँ से पर्यटक सूर्योदय और सूर्यास्त के लुभावने दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।


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पौराणिक कथा के अनुसार राम तथा रावण के मध्य हुए युद्ध के दौरान मेघनाद के तीर से लक्ष्मण घायल एवं मूर्छित हो गए थे। उस समय सब उपचार निष्फल हो जाने के कारण वैद्यराज सुषेण ने कहा कि अब एक ही उपाय शेष बचा है। हिमालय की संजीवनी बूटी से लक्ष्मण की जान बचायी जा सकती है। इस संकट की घड़ी में रामभक्त हनुमान ने कहा। प्रभु मैं संजीवनी लेकर आता हूँ। हनुमानजी हिमालय की और उड़े, रास्ते में उन्होंने नीचे पहाड़ी पर 'याकू' नामक ऋषि को देखा तो वे नीचे पहाड़ी पर उतरे। जिस समय हनुमान पहाड़ी पर उतरे, उस समय पहाड़ी उनका भार सहन न कर सकी। परिणाम स्वरूप पहाड़ी जमीन में धंस गई। मूल पहाड़ी आधी से ज्यादा धरती में समा गई। इस पहाड़ी का नाम 'जाखू' है। यह 'जाखू' नाम ऋषि याकू के नाम पर पड़ा था।

हनुमान ने ऋषि को नमन कर संजीवनी बूटी के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की तथा ऋषि को वचन दिया कि संजीवनी लेकर आते समय ऋषि के आश्रम पर ज़रूर आएंगे। हनुमान ने रास्ते में 'कालनेमी' नामक राक्षस द्वारा रास्ता रोकने पर युद्ध करके उसे परास्त किया। इस दौड़-धूप तथा समयाभाव के कारण हनुमान ऋषि के आश्रम नहीं जा सके। हनुमान याकू ऋषि को नाराज नहीं करना चाहते थे। इस कारण अचानक प्रकट होकर और अपना विग्रह बनाकर अलोप हो गए। ऋषि याकू ने हनुमान की स्मृति में मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर में जहां हनुमानजी ने अपने चरण रखे थे, उन चरणों को संगमरमर पत्थर से बनवाकर रखा गया है। ऋषि ने वरदान दिया कि बंदरों के देवता हनुमान जब तक यह पहाड़ी है, लोगों द्वारा पूजे जाएंगे।

6. महावीर मंदिर, पटना (Mahavir Mandir Patna in Hindi)


देश के अग्रणी हनुमान मन्दिरों में से एक पटना के महावीर मंदिर को मनोकामना मंदिर माना जाता है। यहां हनुमान जी की युग्म प्रतिमाएं हैं। इस मंदिर की ख्याति देश-विदेश में मनोकामना पूरी करने वाले मन्दिर के रूप में है। यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। नए भव्य मन्दिर का जीणोर्द्धार साल 1983 से 1985 के बीच किया गया।

इस मन्दिर में रामभक्त हनुमान जी की युग्म प्रतिमाएं एक साथ हैं। पहली 'परित्राणाय साधूनाम्' जिसका अर्थ है अच्छे व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए और दूसरी 'विनाशाय च दुष्कृताम्' जिसका अर्थ है दुष्ट व्यक्तियों की बुराई दूर करना है। यह हिन्दुओं की आस्था का बडा केंद्र माना जाता है। इस मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु हुमानजी की पूजा-अर्चना करने आते है। यह उत्तर भारत का सबसे प्रसिद्ध मंदिर भी माना जाता है।

महावीर मंदिर का क्षेत्रफल करीब 10 हजार वर्ग फुट है। मंदिर परिसर में आगंतुकों और भक्तों की सभी जरूरी सुविधाएं मौजूद है। मंदिर परिसर में प्रवेश करने के पश्चात बायीं तरफ एक चबूतरे पर सीढ़ियों की श्रृंखला है, जो गर्भगृह की ओर जाती है।


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मंदिर की पहली मंजिल पर देवताओं के चार गर्भगृह हैं। इनमें से एक भगवन राम का मंदिर है, जहां से इसका प्रारंभ होता है। राम मंदिर के पास भगवान कृष्ण का चित्रण किया गया है, जिसमें वे अर्जुन को धर्मोपदेश दे रहे है। इससे अगला देवी दुर्गा का मंदिर है। इसके बाद भगवान शिव, ध्यान करती माँ पार्वती और नंदी-पवित्र बैल की मूर्तियां हैं। जो लकड़ी के कटघरे में रखी गयी हैं। लकड़ी के कटघरे में शिव जी के ज्योतिर्लिंग को स्थापित किया गया है। इस मंजिल पर एक अस्थायी राम सेतु भी मौजूद है। इस सेतु को कांच के एक पात्र में रख गया है, जिसका वजन करीब 15 किलोग्राम है। जिस तरह रामसेतु के पत्थर समुद्र की लहरों पर तैर रहे थे, उसी तरह रामसेतु का टुकड़ा भी यहां पानी में तैर रहा है।

मंदिर की दूसरी मंजिल का प्रयोग अनुष्ठान प्रयोजन के लिए किया जाता है। इस मंजिल पर रामायण की विभिन्न दृश्यों का चित्र प्रदर्शित किया गया है। महावीर मंदिर एक और विशेषता इसका प्रसाद “नैवेद्यम” है, जिसे तिरुपति और आंध्र प्रदेश के विशेषज्ञों द्वारा तैयार किया जाता है। इस प्रसाद में बेसन, चीनी, काजू, किशमिश, हरी इलायची, कश्मीरी केसर समेत अन्य सामग्री डालकर घी में पकाया जाता है। गेंद के आकार में बनाया जाता है।

महावीर मंदिर का नैवेद्यम लड्डुओं का पर्याय है, जिसे हनुमान जी को अर्पित किया जाता है। संस्कृत भाषा में नैवेद्यम का अर्थ है। देवता के समक्ष खाद्य सामग्री अर्पित करना। मंदिर में पूरे साल भक्तों की भारी भीड़ रहती है। लेकिन रामनवमी के मौके पर बड़ी संख्या में लोग दूर-दूर से आते है, और रामनवमी के अवसर पर महावीर मंदिर में भगवान राम, सीता, लक्ष्मण सहित हनुमान जी की भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है।

7. श्री हनुमान मंदिर, जामनगर (Shri Hanuman Mandir, Jamnagar in Hindi)


श्री बाला हनुमान मंदिर, गुजरात राज्‍य के जामनगर में रणमल झील के दक्षिण पूर्व में हनुमान जी का एक चमत्‍कारी मंदिर है। इस मंदिर की स्‍थापना सन् पंद्रह सौ चालीस में जामनगर की स्थापना के साथ ही हुई थी। इस मंदिर की खासियत केवल इसका अति प्राचीन होना ही नहीं है, बल्‍कि आज लोग इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्‍ड रिकॉर्डस का हिस्‍सा होने के चलते भी पहचानते हैं। मंदिर के संरक्षकों के अनुसार 1964 में श्री भिक्‍क्षु जी महाराज ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उसके तीन साल बाद उन्‍होंने ही श्रीराम धुन के निरंतर जाप की परंपरा प्रारंभ करवाई थी। इसी कारण इस मंदिर का विश्‍व कीर्तिमान में शामिल किया गया है।


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एक अगस्त उन्नीस सौ चौसठ में, यानि करीब छप्पन  साल पहले महाराज जी के कहने पर हनुमान भक्‍तों ने 'श्री राम जय राम जय जय राम' मंत्र का जाप लगातार करने का निर्णय लिया। बाद में यह एक अंतहीन परंपरा बन गई और आज तक जारी है। इस राम धुन के जाप में एक और विशेषता है कि इसे गाने वाले सामान्‍य भक्‍तजन ही हैं कोई पेशेवर गायक नहीं। अब तो इनकी बाकयदा सूची बना कर एक दिन पहले नोटिस बोर्ड पर लगा दी जाती है। विशेष परिस्‍थितियों के चलते भी कोई विघ्‍न ना पड़े। इसके लिए चार चार गायकों का नाम अतिरिक्‍त गायकों की लिए रखा जाता है। इसके साथ ही मंदिर में कोई भी भक्त स्वयं अपनी मर्जी से भी राम धुन भजन सभा में शामिल हो सकता है। विशेष बात ये है कि मंदिर में आने वाले भक्‍तों ने अनथक प्रयास से करीब आधी सदी बीत जाने पर भी राम धुन की लहर को टूटने नहीं दिया है। यहां तक कि गुजरात में आये विनाशकारी भूकंप के दौरान भी लोगों ने राम धुन का जाप निरंतर जारी रखा था।

8. हनुमान मंदिर, दिल्ली (Hanuman Mandir, Delhi in Hindi)


दिल्ली का हनुमान मंदिर कनॉट प्लेस में स्थित है। यह दिल्ली में महाभारत काल के पाँच मंदिरों में से एक है। मंदिर में भगवान हनुमान का स्वयं प्रकट रूप है। यहां पर उपस्थित बाल हनुमानजी स्वयंभू हैं। माना जाता है कि इसकी स्थापना पांडवों ने की थी। दिल्ली, जिसका पहले नाम इंद्रप्रस्थ था, उस पर पांडवों का राज था। पांडवों ने राजधानी में जिन पांच हनुमान मंदिरों की स्थापना की थी। यह मंदिर उनमें से एक है। इस मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है कि अपनी दिल्ली यात्रा के समय संत तुलसीदास जी भी इस मंदिर में आए थे और पूजन अर्चन किया था। यही नहीं यह भी कहा जाता है कि तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा की रचना इसी मंदिर में की थी।


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एक बार मुगल सम्राट ने तुलसीदास जी को अपने दरबार में बुलाकर चमत्कार दिखाने को कहा। तुलसीदास जी ने हनुमान जी के आशीर्वाद से जब चमत्कार कर दिखाया। तो सम्राट ने प्रसन्न होकर मंदिर के शिखर पर इस्लामी चंद्रमा सहित किरीट कलश लगवाया। यही कारण रहा कि कई आक्रमणों के दौरान मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इस्लामी चंद्रमा का मान रखा, और कभी भी इस मंदिर को क्षति नहीं पहुंचाई।

इस समय जो मंदिर है उसकी इमारत आंबेर के महाराजा मान सिंह प्रथम ने मुगल सम्राट अकबर के शासन काल में बनवायी, जिसका विस्तार महाराजा जयसिंह द्वितीय ने जंतर-मंतर के साथ करवाया। कहा जाता है कि मंदिर के पहले के निर्माण से लेकर अब तक बहुत परिवर्तन हुए, लेकिन हनुमानजी की मूर्ति वहीं पर स्थापित है, जहां शुरू में थी।

9. हनुमान धारा, चित्रकूट (Hanuman Dhara, Chitrakoot in Hindi)

चित्रकूट में पंचमुखी हनुमान धारा मंदिर एक खड़ी पहाड़ी पर कई सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित है। हनुमान धारा के बारे में कहा जाता है कि जब श्री हनुमान जी ने लंका में आग लगाई। उसके बाद उनकी पूंछ में लगी आग को बुझाने के लिए वो इस जगह आये जिन्हे भक्त हनुमान धारा कहते है। यह चित्रकूट में राम घाट से 4 किलोमीटर दुर है। एक चमत्कारिक पवित्र और ठंडी जल धारा पर्वत से निकल कर हनुमान जी की मूरत की पूँछ को स्नान कराकर नीचे कुंड में चली जाती है। कहा जाता है कि जब हनुमानजी ने लंका में अपनी पूँछ से आग लगाई थी तब उनकी पूँछ पर भी बहूत जलन हो रही थी। हनुमानजी ने भगवन श्रीराम से विनती की जिससे अपनी जली हुई पूँछ का इलाज हो सके। तब श्री राम ने अपने बाण के प्रहार से इसी जगह पर एक पवित्र धारा बनाई, जो हनुमान जी की पूँछ पर लगातार गिरकर पूँछ के दर्द को कम करती रही। यह जगह पर्वत माला पर है।
पहाड़ के सहारे हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति के ठीक सिर पर दो जल के कुंड हैं, जो हमेशा जल से भरे रहते हैं और उनमें से निरंतर पानी बहता रहता है। पहाड़ी के शिखर पर स्थित हनुमान धारा में हनुमान की एक विशाल मूर्ति है। मूर्ति के सामने तालाब में झरने से पानी गिरता है।


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इस धारा का जल हनुमानजी को स्पर्श करता हुआ बहता है। इसीलिए इसे हनुमान धारा कहते हैं। हनुमान जी ने चित्रकूट आकर विंध्य पर्वत श्रंखला की एक पहाड़ी में श्री राम रक्षा स्त्रोत का पाठ 1008 बार किया। जैसे ही उनका अनुष्ठान पूरा हुआ ऊपर से एक जल की धारा प्रकट हो गयी। जलधारा शरीर में पड़ते ही हनुमान जी के शरीर को शीतलता प्राप्त हुई। आज भी यहां वह जल धारा के निरंतर गिरती है। जिस कारण इस स्थान को हनुमान धारा के रूप में जाना जाता है। धारा का जल पहाड़ में ही विलीन हो जाता है। उसे लोग प्रभाती नदी या पातालगंगा कहते हैं।

10.  सालासर हनुमान मंदिर, सालासर (Salasr hanuman Mandir, Salasar in Hindi)


सालासर बालाजी मंदिर राजस्थान के सालासर शहर में स्थित हनुमान के भक्तों के लिए एक अनूठा और महत्वपूर्ण मंदिर है। मंदिर में गोल चेहरे, मूंछ और दाढ़ी के साथ भगवान हनुमान की मूर्तियां हैं। यह मंदिर राजस्थान के चुरू जिले में हैं। इसे श्री सालासर बालाजी के नाम से जाना जाता है। यहां दाढ़ी मूंछ वाले भगवान हनुमान की पूजा होती है। माना जाता है कि यह भारत का ऐसा पहला मंदिर है जहां बालाजी की दाढ़ी मूंछ वाली प्रतिमा स्थापित है।
सालासर बालाजी धाम राजस्थान के चूरू जिले में सीकर जिले की सीमा पर स्थित है। चूरू के गांव सालासर में बालाजी मंदिर की स्थापना का इतिहास बड़ा रोचक है। मोहनदास बालाजी के भक्त थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर बालाजी ने इन्हें मूर्ति रूप में प्रकट होने का वचन दिया। कहा जाता है कि भक्त मोहनदास को दिया वचन पूरा करने के लिए बालाजी नागौर जिले के आसोटा गांव में अठारह सौ ग्यारह में प्रकट हुए। कथाओं के अनुसार, आसोटा में एक जाट खेत जोत रहा था, तभी उसके हल की नोक किसी कठोर चीज से टकराई। उसे निकाल कर देखा तो एक पत्थर था। जाट ने अपने अंगोछे से पत्थर को पोछकर साफ किया तो उस पर बालाजी की छवि नजर आने लगी। इतने में जाट की पत्नी खाना लेकर आई। उसने बालाजी के मूर्ति को बाजरे के चूरमे का पहला भोग लगाया। यही कारण है कि सालासर बालाजी को चूरमे का भोग लगया जाता है। बताया जाता है कि जिस दिन जाट के खेत में यह मूर्ति प्रकट हुई थी। उस रात बालाजी ने सपने में आसोटा के ठाकुर को अपनी मूर्ति सलासर ले जाने के लिए कहा। दूसरी तरफ बालाजी ने मोहनदास को सपने में बताया कि जिस बैलगाड़ी से मूर्ति सालासर पहुंचेगी। उसे सालासर पहुंचने पर कोई नहीं चलाए। जहां बैलगाड़ी खुद रुक जाए, वहीं मेरी मूर्ति स्थापित कर दिया जाए। मूर्ति को उस समय वर्तमान स्थान पर स्थापित किया गया।
पूरे भारत में एक मात्र सालासर में दाढ़ी मूंछों वाले हनुमान यानी बालाजी स्थापित हैं। इसके पीछे मान्यता यह है कि मोहनदास को पहली बार बालाजी ने दाढ़ी मूंछों के साथ दर्शन दिए थे।

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