Gautam Buddha |
Buddha Jayanati 2020 | Buddha Purnima 2020 | वैशाख पूर्णिमा 2020 | बुद्ध पूर्णिमा 2020
भारतीय इतिहास में ऐसा किसी महापुरुष के साथ नहीं हुआ कि जिस तिथि (वैशाख पूर्णिमा) पर उनका जन्म हुआ, उसी तिथि पर उन्हें दिव्य ज्ञान (ईश्वरत्व) प्राप्त हुआ और उसी तिथि पर महाप्रयाण (मृत्यु) भी किया हो. वे महान युगपुरुष थे महात्मा बुद्ध (mahatma budh). अपनी मानवतावादी और विज्ञानवादी बौद्ध धर्म दर्शन से राजकुमार सिद्धार्थ (Prince Siddhartha) से ईश्वरत्व को प्राप्त हुए भगवान बुद्ध (Lord Buddha) को दुनिया ने सबसे महान पुरुष माना है. आज बौद्ध धर्म को मानने वाले दुनिया के लगभग 200 करोड़ से अधिक लोग बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) को सादगी और शांति से मनाते हैं.हिंदू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार थे, इसलिए हिंदुओं के लिए भी यह दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. भारत, चीन, जापान, नेपाल, सिंगापुर, इंडोनेशिया, थाइलैंड, म्यामार, कंबोडिया, पाकिस्तान समेत विश्व के कई देशों में बुद्ध पूर्णिमा का पर्व पूरी आस्था एवं श्रद्धा से मनाया जाता है. आखिर कौन थे भगवान बुद्ध (bhagwan buddha), और कब व कैसे उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई, आइये जानते हैं.
राजकुमार सिद्धार्थ गौतम बुद्ध कैसे बने: gautam buddha story in hindi
आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले उत्तर भारत में शाक्य वंशीय महाराजा शुद्धोधन का राज्य था। उनकी राजधानी कपिलवस्तु थी। शाक्य वंश, सूर्य वंश की एक शाखा मानी जाती है। इसी वंश के इक्षवाक् वंश में त्रेतायुग में भगवान श्री राम का अवतार हुआ है।महाराज शुद्धोधन की महामाया तथा प्रजावती नाम की दो रानियाँ थीं। एक रात रानी महामाया ने स्वप्न में एक छः दांतों वाला सफेद हाथी देखा और एक छः नोक वाला तारा चमक रहा है | वह तारा उनके शरीर में प्रवेश कर गया । महारानी महामाया उसी दिन गर्भवती हो गईं। जब महारानी महामाया अपने पिता के घर जा रही थीं तब मार्ग में लुम्बनी वन में बिना किसी कष्ट के एक पुत्र का जन्म हुआ (gautam buddha was born in)। वह पुत्र उत्पन्न होते ही सात कदम चलता गया और जहाँ उसने पैर रखे वहीं पर पृथ्वी से कमल के फूल प्रकट हुए। बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया। महारानी महामाया का कुछ दिनों में ही स्वर्गवास हो गया। इसलिए सिद्धार्थ का पालन दूसरी रानी प्रजावती ने किया।
सिद्धार्थ का बचपन: Childhood of Prince Siddhartha in hindi
सिद्धार्थ (gautam buddha siddhartha) बचपन में ही ध्यान मग्न रहते थे। कुछ बड़े होने पर जव वे शिकार करने जाते तो मृग पर बाण नहीं चलाते थे और उसे भाग जाने देते थे । जब उनका घोड़ा थक कर हॉँफने लगता तब नीचे उतर कर उसे थपथपाने और प्यार करने लगते थे। एक दिन उनके बगीचे में एक हंस ऊपर से गिर पड़ा। कुमार देवदत्त ने उस हंस को बाण मार कर गिराया था। सिद्धार्थ ने हंस को अपनी गोद में उठा लिया और बाण निकाल कर उसके जख्म धोये। देवदत्त जब हंस माँगने आया तो उन्होंने उसे देने से इंकार कर दिया और जब हंस स्वस्थ होकर उड़ने योग्य हुआ तो उन्होंने उसे उड़ा दिया।राजकुमार सिद्धार्थ (prince siddhartha) के जन्म के समय ज्योतिषियों ने कहा था कि या तो ये चक्रवर्ती राजा होंगे या विरक्त ज्ञानी होंगे। इसलिए महाराज शुद्धोधन ने उनका विवाह राजकुमारी यशोधरा (गोपा) से कर दिया और एक विशाल भवन में इनके रहने की व्यवस्था कर दी। वहाँ कोई वृद्ध, रोगी नहीं जा सकता था और कोई दुःख की चर्चा की जा सकती थी जिससे कि राजकुमार सिद्धार्थ के कोई वैराग्य का भाव आये। .
एक दिन राजकुमार सिद्धार्थ ने नगर देखने की इच्छा प्रकट की | महाराज शुद्धोधन ने नगर को खूब सजवा दिया । राजकुमार सिद्धार्थ रथ पर चढ़कर नगर में घूमने गये | संयोगवश मार्ग में उन्हें एक बूढ़ा लाठी टेक कर चलता हुआ दिखाई दे गया | दूसरी बार मंत्री के पुत्र के साथ, साधारण सौदागर के वेष में नगर घूमने गये तो उन्हें एक रोगी जिसका शरीर घावों से भरा हुआ था, दिखाई दिया। राजकुमार ने उस रोगी को सहारा देकर उठाया | तीसरी बार जब फिर रथ में बैठकर नगर देखने गये तो उन्होंने एक मुर्दे को ले जाते हुए कुछ लोगों को देखा।
बूढ़े, रोगी और मुर्दे को देखकर राजकुमार समझ गये कि बुढ़ापा और रोग सब को मिलते हैं। एक न एक दिन सबको मरना है। अमरत्व कैसे पाया जाये ?
उन्हें यह धुन लग गई और वे एक रात अपनी पत्ली यशोधरा और अपने नवजात पुत्र राहुल को छोड़कर घर से निकल पड़े और अपने कन्थक नाम के घोड़े पर सवार होकर अनामा नदी पार चले गये। उनका सारथी छंदक भी उनके साथ था। नदी पार होकर राजकुमार सिद्धार्थ ने अपनी तलवार से अपने लम्बे बाल काट डाले। उन्होंने अपने सब आभूषण और राजसी वस्त्र उतार कर छंदक सारथी को दे दिये और घोड़े के साथ उसे वापिस भेज दिया।
सच्चे ज्ञान की खोज: Buddha in quest of true knowledge in hindi
राजकुमार सिद्धार्थ सच्चे ज्ञान की खोज में कई विद्वानों के पास गये; लेकिन उनको कहीं संतोष नहीं हुआ | इसलिए उन्होंने कठोर तपस्या करने का निश्चय किया और वन में एक वृक्ष के नीचे आसन लगा कर बिना कुछ खाये पीये ध्यान-मग्न बैठ गये। कठोर तप करने से उनका शरीर सूख गया।एक दिन कुछ स्त्रियाँ गाती हुई उस वन में से निकलीं | उनके गीत का भाव था कि वीणा के तार इतने मत खींचो कि टूट जायें और इतना ढीला भी मत छोड़ो कि उस से स्वर न निकले । इस गीत से बुद्ध ने शिक्षा ली और उन्होंने कठोर तपस्या छोड़कर मध्यम मार्ग ग्रहण किया। वहाँ से चलकर वे एक वट वृक्ष के नीचे बैठ ग॑ये। सुजाता नाम की एक स्त्री ने वट के देवता की मनौती की थी कि यदि उसे पुत्र हुआ तो वह उसे खीर चढ़ायेगी | वट के नीचे तपस्वी सिद्धार्थ को देखकर उसने समझा कि यह वट देवता प्रकट हो गये हैं। उसने बड़ी श्रद्धा से उन्हें खीर भेंट की | सिद्धार्थ ने सुजाता की दी हुई खीर खाई । उन्होंने स्वस्तिक नाम के एक ब्राह्मण को कुश लिए जाते हुए देखा | उन्होंने उस ब्राह्मण से कुश माँगी। ब्राह्मण ने बड़े आदर से उन्हें कुश दे दी | लिद्धार्थ उस कुश को बोधि वृक्ष के नीचे बिछाकर इस निश्चय से बैठ गये कि अब तो ज्ञान प्राप्त करके ही उठेंगे। उनके निश्चय को अडिग करने के लिए कामनाओं का देवता दुरात्मा 'मार' अप्सराओं और राक्षसों को लेकर वहाँ आया और उन्हें डराने तथा ललचाने लगा; लेकिन सिद्धार्थ अपने ध्यान में मग्न रहे | 'मार' हार कर वापिस चला गया | उसी बोधि वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त हुआ और इस स्थान का नाम बोध गया हो गया और सिद्धार्थ गौतम बुद्ध (gautam buddha) हो गये। बोध गया, गया का उपनगर है।
सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध: From Siddhratha to Gautam Buddha in hindi
ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् गौतम बुद्ध काशी आये | कठोर तपस्या के आरम्भ में उनके ५ साथी थे, लेकिन जब उन्होंने सिद्धार्थ को तपस्या से अनग होते देखा था, तो वे उन्हें छोडकर काशी चले आये थे | भगवान बुद्ध काशी (सारनाथ) आकर उन साथियों (पंचभद्रीय विप्र) से मिले ओर उन्हें अपने दिव्य ज्ञान का प्रथम उपदेश दिया ओर वे ही उनके प्रथम शिष्य बने। काशी के पास सारनाथ में ही उन्होने धर्मचक्र का परिवर्तन आरम्भ किया था।
गौतम बुद्ध की शिक्षा: gautam buddha quotes in hindi
उनकी शिक्षा के मुख्य चार उपदेश हैं जो चार “आर्य सत्य” कहे जाते हैं (१) दुःख क्या है? (२) दुःख कैसे उत्पन्न होता है? (3) दुखों का मिटना क्या है? (४) दुःख कैसे मिटते है ?उन्होने अष्ट मार्ग बताया जो यह है (१) सम्यक दृष्टि (२) सम्यक् सकल्प (३) सम्यक वाचा। (४) सम्यक् कर्म (५) सम्यक् जीविका (६) सम्यक् व्यायाम (७) सम्यक् स्मृति (६) सम्यक् समाधि।
भगवान बुद्ध (lord buddha teachings) का कहना था कि संसार दुःखों का घर है। जन्म भी दु:ख है और बुढापा भी दुःख है । मरण, शोक, मन का खेद सब दुःख हें। न चाहने वालों से मिलन, अप्रिय से संयोग, प्रिय से वियोग भी दुःख हैं। किसी वस्तु की इच्छा करके उसे न पाना भी दुःख है। जिसका जन्म होता है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है। मनुष्य संसार में आकर कभी भी दुःखों से छुटकारा नहीं पाता | एक न एक दुःख मनुष्य को हर समय लगा रहता है।
मनुष्य की तृष्णा उसके दुःखों का मुख्य कारण है। तृष्णा से मनुष्य को अंहकार, ममता, राग, द्वेष, कलह आदि दुःख उत्पन्न होते हैं । मनुष्य अपनी तृष्णाओं का दमन करके ही इन दुःखों से छुटकारा पा सकता है।
मृत्यु का कारण जन्म है | तृष्णा वासना या इच्छा के कारण मनुष्य को फिर जन्म लेना पड़ता है। आत्मा को नया शरीर धारण करने से मुक्ति मिल जाये, तो उसे फिर कभी मृत्यु का दुःख न भोगना पडे। राग, द्वेष व मोह से रहित होकर ज्ञानवान व्यक्ति कर्म करे, तो वह बन्धनों में नहीं पड़ता और आवागमन के चक्कर से मुक्ति पाकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
मनुष्य अपने जीवन में ही निर्वाण प्राप्त कर सकता है। तृष्णाओं से मुक्त होकर दुःख रहित अवस्था का नाम ही निर्वाण है। भगवान बुद्ध ने अहिंसा पर बहुत जोर दिया है। उन्होंने पशु बलि का बहुत कठोरता से विरोध किया है। वे तो जीवों को किसी भी रूप में हानि पहुँचाने को हिंसा मानते थे।
उन्होंने सामाजिक ऊँच-नीच का भी बड़ी कठोरता से विरोध किया और छूआछूत की भावना को अत्याचारपूर्ण बताया | उनका कहना था कि किसी ब्राह्मण के घर जन्म लेने से कोई मनुष्य ब्राह्मण नहीं बनता । मनुष्य अपने कर्मों से ही ब्राह्मण या अब्राह्मण होता है।
भगवान बुद्ध के उपदेशों को 'धम्मपद' नामक पुस्तक में लेखबद्ध किया गया है जिसमें उनके कुछ उपदेशों का अर्थ इस प्रकार है।
कोई मनुष्य संग्राम में लाखों मनुष्यों को जीत ले और दूसरा मनुष्य अपने आप को जीत ले, तो दूसरा मनुष्य ही संग्राम विजयी है।
जिस प्रकार स्वर्णकार चांदी के मैल को दूर करता है उसी प्रकार मेधावी मनुष्य थोड़ा-थोड़ा करके क्षण-क्षण में क्रमशः अपने दोषों को दूर करे आदि।
धीरे-धीरे भगवान गौतम बुद्ध के अनुयायिओं की संख्या बढ़ने लगी और वे घूम-घूम कर ज्ञान का उपदेश देने लगे | घूमते-घूमते भगवान बुद्ध कश्यप ब्राह्मणों के यहाँ गये | उनकी अग्निशाला में एक भंयकर जहरीला साँप रहता था | जब बुद्ध अग्निशाला में बैठ गये, तो वह साँप उन पर झपटा; लेकिन बुद्ध की दृष्टि पड़ते ही शान्त होकर उनके भिक्षा पात्र में ही बैठ गया।
एक बार बुद्ध गयसिरस पर्वत पर गये | वहाँ दावाग्नि लगी थी, उस दावाग्नि को अपने शिष्यों को दिखाकर भगवान बुद्ध ने कहा, “देखो सारा संसार इसी प्रकार राग द्वेष आदि दु:खों से जल रहा है जो इस ज्वाला से निकल कर अध्यात्म तत्व की खोज करे वही बुद्धिमान है।"
भगवान बुद्ध गयसिरस से चलकर राजगृह (राजगीर) पहुँचे। महाराजा बिम्बसार अपनी रानी, राजकुमार और मंत्रियों के साथ उनका स्वागत करने आये। वहाँ पर महाराजा बिम्बसार ने बुद्ध धर्म ग्रहण किया। वहाँ से अनेक स्थानों पर होते हुए भगवान बुद्ध अपने पिता के नगर में पहुँचे और भिक्षा माँगने लगे। जब उनके पिता को इस बात का पता चल्रा तो उन्हें बहुत दुःख हुआ | वे अपने मंत्रियों सहित उनके पास आये, लेकिन गौतम बुद्ध ने त्यागी का धर्म समझा कर उन्हें संतुष्ट किया।
अपने पिता की प्रार्थना पर बुद्ध भिक्षा लेने राजमहल में आये और अपनी पत्नी यशोधरा के भवन में जाकर उसे दर्शन दिये। यशोधरा ने अपने पुत्र राहुल को सिखाया कि वह अपने पिता से पैतृक सम्पत्ति माँगे | जब बालक राहुल ने उनके पास जाकर पैतृक सम्पत्ति मांगी तो भगवान बुद्ध ने उसे अपने साथ ले लिया; क्योंकि उनकी सम्पत्ति तो त्याग थी।
भगवान बुद्ध ने अंगुलिमाल नामक डाकू को उसके पाप कर्म से छुड़ा कर अपना शिष्य बनाया | आम्रपाली नामक गणिका ने भी भगवान बुद्ध को निमंत्रण दिया और उनके संघ में शामिल हो गई।
कुछ लोग द्वेष वश बुद्ध का विरोध करने लगे | शिष्यों के अनुरोध पर बुद्ध ने उनको चमत्कार दिखाना स्वीकार किया । उन्होंने एक आम चूस कर उसकी गुठली जमीन में गाड़ दी और उस पर हाथ धोये | उसी समय गुठली में से अंकुर निकल कर तत्काल वृक्ष बन गया और उसमें फल भी आ गये।
एक बार भगवान गौतम बुद्ध अपने शिष्यों से अलग होकर कुछ दिन एकांत वन में रहे। वहाँ पर एक हाथी और एक बन्दर उनके लिए फल, फूल और जल लाकर उनकी सेवा करने लगे।
एक बार बुद्ध ने एक भेड़ के बच्चे को चोट लगने के कारण लंगड़ाते हुए चलते देखा। बुद्ध ने उस बच्चे को गोद में उठा लिया और वह भेड़ों के पीछे-पीछे चलने लगे। बुद्ध ने एक यक्ष का भी उद्धार किया।
बुद्ध के विरोधियों में कुमार देवदत्त प्रमुख था। उसने राजा अजातशत्रु को बुद्ध के विरुद्ध भड़का कर उनके ऊपर नीलगिरी नाम का हाथी छुड़वाया | लेकिन वह हाथी बुद्ध के पास पहुँचकर उनके सामने बैठ गया और उनकी चरण धूलि अपने मस्तक पर चढ़ाने लगा।
भगवान गौतम बुद्ध ने सभी वर्ग के लोगों को अपने उपदेशों से धर्म का सच्चा मार्ग दिखाया। उन्होंने अपना अंतिम उपदेश “चापल्य चैत्य” स्थान पर आनन्द तथा दूसरे भिक्षुओं को दिया और उनके साथ वहाँ से चले गये। 'मार” देवता ने उनके पास आकर प्रार्थना की कि आपका कार्य पूरा हो चुका है अब आप निर्वाण स्वीकार करें । बुद्ध ने 'मार' की प्रार्थना स्त्वीकार कर ली। वहाँ से कुशी नगर में आकर बुद्ध ने आनन्द से जल माँगा | आनन्द भगवान बुद्ध का सबसे प्रिय शिष्य था। उस ने एक छोटी-सी नदी से जल लाकर बुद्ध को पिलाया | उसके बाद कुशीनगर में ही साल वन में दो साल वृक्षों के बीच आनन्द ने चादर बिछाई। भगवान बुद्ध उस चादर पर लेट गये और लेटे-लेटे ही उन्होंने परिनिर्वाण ग्रहण कर लिया।
उनके निर्वाण से भिक्षु संघ तथा पूरे देश में हाहाकार मच गया और अंत में बड़ी श्रद्धा से उनका अग्नि संस्कार हुआ। उनके फूल (अस्थियाँ) देश के आठ स्थानों पर स्थापित करके उन पर आठ स्तूप बनाये गये | नौवें स्थान पर वह कुम्भ जिसमें अस्थियाँ थीं और दसवें स्थान पर चिता के अंगार स्थापित कर के उन पर भी स्तूप बनाये | इस प्रकार कुल दस स्तूप भगवान बुद्ध के स्मारक बनाये गये।
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