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Baidyanath dham temple history in hindi

baba baidyanath dham temple
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श्री वैद्यनाथ शिवलिंग (baba baidyanath dham temple) का समस्त ज्योतिर्लिंगों की गणना में नौवाँ स्थान बताया गया है। भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर (baba baidyanath dham temple deoghar jharkhand) जिस स्थान पर अवस्थित है, उसे 'वैद्यनाथधाम' कहा जाता है। यह स्थान झारखण्ड प्रान्त, पूर्व में बिहार प्रान्त के सन्थाल परगना के दुमका नामक जनपद में पड़ता है।


बैद्यनाथ धाम को रावणेश्वर बैद्यनाथ क्यों कहा जाता है?- Story of Baba Baidyanath Dham Temple in Hindi

बैद्यनाथ धाम (baba baidyanath dham temple) को रावणेश्वर बैद्यनाथ कहे जाने के पीछे एक कहानी है। कहा जाता है कि रावण ने विचार किया कि यदि भगवान शिव लंका में निवास करें तो मेरा राज्य सदा सम्पन्न तथा स्थिर रहेगा। वह शिव का बड़ा भक्त था और शिव की याद आते ही वह उनको लंका में लाने के लिए अधीर हो गया। वह उसी समय कैलाश पर्वत पर जाने के लिए तैयार हो गया और नंगे पांव ही प्रस्थान किया । मार्ग में हिंसक जीव-जन्तुओं, घने वनों, नदी-नालों तथा पर्वत मालाओं को पार करता हुआ हरिद्वार में पवित्र गंगा के तट पर पहुँचा।

कैलाश पहुंचा शिव भक्त रावण (baidyanath dham temple history in hindi)

वह पवित्र गंगा में स्नान तथा स्तुति करके कैलाश पर्वत की ओर बढ़ा और कैलाश की स्तुति करके भगवान शिव के दर्शन करने के लिये उनके निवास स्थान पर गया। प्रथम बार में उसे दर्शन नहीं हुए। उसने निश्चय किया कि जब तक मुझे शिव के दर्शन नहीं होंगे तब तक मैं भोजन, शयन तथा वार्तालाप आदि कुछ नहीं करूँगा। ऐसा निश्चय करके वह शिव जी के ध्यान में मग्न हो गया | वह अपने हृदय पट पर शिव की मूर्ति रखकर ध्यान रहित हुआ और भगवान शिव के द्वार पर पहुँचा, उस समय नन्दी द्वार पर पहरा दे रहा था |


रावण पर प्रसन्न हुए महादेव

जगदम्बे पार्वती प्रणय-कुपिता हो अन्य शिला पर बैठी थी | रावण जैसे ही अन्दर जाने लगा, नन्दी ने उसे रोक दिया। रावण ने गुस्से में आकर नन्दी को नन्दन वन में फेंक दिया और अपने भुजदंड से कैलाश पर्वत को हिलाने लगा । कैलाश पर्वत के हिलने से पार्वती जी डर गईं ओर शिवजी की गोद में आ गिरी | शिव जी प्रसन्नं हो गये और अपने अंगूठे से कैलाश पर्वत को दवा कर स्थिर किया | रावण अपनी शक्ति का घमंड भूल गया और बहुत लज्जित हुआ |
उसने अन्दर प्रवेश करके शिवजी के सामने हाथ जोड़कर निवेदन किया कि है प्रभु, आपके दर्शनों के लिये आया था । नन्दी ने अन्दर आने से रोक दिया तो मैंने अपना अपमान समझकर उसे नंदन वन में फेंक दिया और कैलाश पर्वत को हिला डाला। मैं अपराधी हूँ, आप जो दण्ड देना चाहें, उसे भुगतने के लिये तैयार हूँ । रावण के इस प्रकार सत्य वचन सुनकर शिव प्रसन्न हुए और वरदान मांगने के लिये कहा |

भगवान शिव ने दिया रावण को वर  

रावण ने कहा हे प्रभु, यदि मुझ पर प्रसन्न होकर वरदान देते हो तो आप गेरे साथ लंका में चल कर सदा वहीं पर रहें | शिव ने स्वीकार करके उसे एक कामलिंग दिया और कहा कि यदि रास्ते में तुमने इस काम लिंग को भूमि पर रख दिया तो इसे वहाँ से तुम, या कोई भी देवता या दैत्य उठा नहीं सकेगा और तुम इसे लंका नहीं ले जा सकोगे। यह सुनकर रावण ने अपने दिल में प्रसन्न होकर वह कामलिंग उठाना चाहा कि उसी समय पार्वती जी ने कहा कि पहले तुम्हें आचमन करना चाहिये; क्योंकि बिना आचमन किये शिव लिंग स्पर्श करने से आयु, विद्या तथा बल नष्ट हो जाता है। रावण ने पार्वती जी की बात मान ली। पार्वती जी ने रावण को आचमन के लिये जल दिया जो मेवाभी मंत्रित था अर्थात् उसमें वरुण देवता का वास था।


देवी पार्वती ने रची लीला

तत्पश्चात् रावण आचमन करके उस कामलिंग को लेकर चल दिया; परन्तु रास्ते में हरितकी वन (जहाँ अब वैद्यनाथ धाम है) में पहुँचकर लघुशंका से पीड़ित हुआ। वह कामलिंग को पृथ्वी पर नहीं रख सकता था | उसी समय विष्णु भगवान एक ब्राह्मण का भेष बना कर वहाँ आये । रावण ने कामलिंग उनके हाथ में दे दिया और एक ओर जाकर लघुशंका करने लगा। पार्वती जी ने उसे मेवाभी मंत्रित जल पिलाया था जिससे उसके पेट में जल भर गया था और वह बहुत देर तक लघुशंका करता रहा | इतने में विष्णु भगवान ने कामलिंग को हरितकी वन में भूमि पर स्थापित कर दिया था | रावण ने मूत्र त्याग करके लौटने पर कामलिंग को भूमि पर स्थापित देखा तथा वह व्यक्ति भी वहाँ नहीं था। रावण लिंग को उठाने लगा; परन्तु पूरा बल लगाने पर भी नहीं उठा सका।


रावण की तपस्या

तब रावण ने शिव का घोर तप किया और अपने नौ सिर काट कर हवन में होम कर दिये | रावण की ऐसी घोर तपस्या देखकर शिवजी प्रकट हुए और कहा कि हे रावण! तुमने मेरा वचन नहीं माना और कामलिंग पृथ्वी पर रख दिया। अब मैं उठ नहीं सकता। मैं यहीं पर तुम्हारे नाम से स्थिर रहूँगा। इसलिये बैद्यनाथ धाम का असली नाम रावणेश्वर बैद्यनाथ धाम है।


बैजू भील की कहानी (baidyanath dham temple history)

इस तीर्थ का नाम बैजनाथ (baidyanath dham temple) होने के पीछे एक और कथा है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में ब्राह्मणो का एक दल इस पवित्र स्थान पर आया और उन्होंने जंगलों को साफ करके शिवालय के निकट जलाशय के किनारे अपना निवास स्थान बनाया। कुछ संथाल भी यहाँ रहते थे। ब्राह्मण अपने अभीष्ट देव की पूजा करते थे। धनवान होने पर ब्राह्मण आलसी हो गये । बैजु नामक भील जो संथालों का राजा था, ने सोचा कि अब ब्राह्मणों के देवता का प्रभाव नहीं रहा है, इसलिये वह प्रतिदिन देव मूर्ति पर डंडा मार कर भोजन करने तथा जल पीने लगा। एक दिन वन में उसकी गाय खो गई । गाय को खोजते-खोजते संध्या हो गई | गाय को घर लाने के बाद वह भोजन करने बैठा कि उसे याद आया कि आज तो शिव पर डंडा मारा ही नहीं। याद आते ही वह भूखा प्यासा उठकर शिव पर डंडा मारने के लिये चल दिया | उसके इस प्रबल संकल्प को देख कर शिव प्रसन्न हुए और प्रकट होकर उसे दर्शन दिये तथा वरदान माँगने के लिये कहा। बैजु ने कहा कि हे प्रभु, मुझे धन की कोई इच्छा नहीं मेरे पास बहुत धन है और मैं संथालों का राजा भी हूँ। मेरी तो केवल यह इच्छा है कि लोग आपके नाम के साथ मुझे भी पुकारें। तब से इस स्थान का नाम बैजु के नाथ बैजनाथ हुआ।


बैजनाथ धाम के दर्शनीय स्थान (Places to visit in Baijnath Dham in Hindi)


वैद्यनाथ मन्दिर, देवघर एक पुराणकालीन मन्दिर है जो भारतवर्ष के राज्य झारखंड में अतिप्रसिद्ध देवघर नामक स्थान पर अवस्थित है। पवित्र तीर्थ होने के कारण लोग इसे वैद्यनाथ धाम भी कहते हैं। जहाँ पर यह मन्दिर स्थित है, उस स्थान को "देवघर" अर्थात देवताओं का घर कहते हैं। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित होने के कारण इस स्थान को देवघर नाम मिला है। यह ज्योतिर्लिंग एक सिद्धपीठ है। कहा जाता है कि यहाँ पर आने वालों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस कारण इस लिंग को "कामना लिंग" भी कहा जाता हैं। बैजनाथ धाम में मुख्य बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के अलावा कई अन्य मंदिर हैं, जो भक्तों के लिए श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र होते हैं. आइये जानते हैं बैजनाथ धाम के मंदिरों और दर्शनीय स्थानों के बारे में:

भगवान शिव का मुख्य मन्दिर (baidyanath dham temple jharkhand)


बैद्यनाथ मन्दिर के प्रांगण के बीच में भगवान शिव का मुख्य मन्दिर है। यह बहुत विशाल तथा भव्य मन्दिर है। कहा जाता है कि इसे विश्वकर्मा ने बनाया था। यही यहाँ का ज्योतिर्लिंग का स्थान है । शिवलिंग की ऊँचाई बहुत कम है | शिवलिंग भूमि से केवल ८ ऊंगल है और फैले हुए रूप में है। मन्दिर के ऊपर एक विशाल स्वर्ण कलश है । इस कलश से पहले यहाँ पर ताम्र कलश था जो अब स्वर्ण कलश के भीतर है। मन्दिर के भीतरी परकोष्ठ में शिखर के नीचे एक चमकता हुआ रत्न है जिसे चन्द्रकान्त मणि कहते हैं। इस रत्न का पता १६६२ ई० में उस समय लगा जब शिवलिंग के ऊपर का चन्दवा खोला गया और ऊपर सर्च लाईट फेंकी गई। तब देखा गया कि चतुपशिव के आकार में अष्टदल कमल बना हुआ है और उसके बीच में यह लाल चमकता हुआ रत्न है। इसमें से प्रत्येक मिनट पर एक शीतल जल की बूंद शिव के मस्तक पर पड़ती है। कहा जाता है कि यह मणि रत्न धनकुबेर की राजधानी अलकापुरी में थी। रावण ने वहाँ से इस मणि को लाकर इस मन्दिर में जड़ित किया। मन्दिर में एक बहुत बड़ा छिद्र युक्त चाँदी का अभिषेक कलश है जिसे त्रिपदी पर रख कर गर्मियों में शीतल जल से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है।
कहा जाता है कि यह चाँदी का कलश गिद्धौर के राजा श्रीयुत पूर्ण सिंह ने दिया था। उन्होंने जब शिव मन्दिर का निर्माण कराया तब चाँदी के दरवाजों की जोड़ी दी और सोने के भोगपात्र दिए और वैशाख की तपत के समय शिव अभिषेक के लिये यह चाँदी का कलश दिया था।

मुख्य मन्दिर के चारों तरफ प्रांगण में २२ अन्य देवी-देवताओं के मन्दिर हैं, जो निम्नलिखित हैं:

पार्वती मन्दिर

यह कामदा गौरी सर्वशक्ति स्वरूपणी माँ पार्वती का मन्दिर है। यह प्रांगण के बीच मुख्य शिव मन्दिर के बिल्कुल सामने पूर्व दिशा में है। यह मन्दिर एक बहुत ऊँची चबूतरी पर स्थित हे तथा बहुत सुन्दर तथा कलात्मक है। मन्दिर में पार्वती और दुर्गा की दो सुन्दर मूर्तियाँ हैं । मन्दिर की ऊँचाई से प्रतीत होता है कि शिव ने स्वयम् नीचे स्थान पर रहकर शक्ति का स्थान अपने से ऊपर दिया है। शक्ति के बिना शिव शव हो जाते हैं। इसीलिये शक्ति का स्थान ऊँचा है। इसी स्थान पर सती का हृदय गिरा था, इसलिये यही शक्तिपीठ एवम् हृदयपीठ का स्थान है।

जगत् जननी मन्दिर

पार्वती मन्दिर से दक्षिण की तरफ जगत् जननी माँ का मन्दिर है जो देव आराधना मुद्रा में ध्यान मग्न बैठी हैं । दाहिनी ओर अन्य मूर्तियाँ हैं।

सिद्धि दाता गणेश

विघ्न विनाशक गणेश अष्टभुज और नृत्य मुद्रा में हैं। अप्टभुजाओं में खड़ग, शंख, गदा, चक्र तथा लड्डू इत्यादि हैं। उदर बड़ा ओर जनेऊ युक्त हैं। नीचे  रिद्धि सिद्धि हैं।


अन्य मंदिर

इनके अलावा कई अन्य मन्दिर इस प्रांगण में हैं और मुख्य मन्दिर के चारों तरफ हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे यह सब देवी देवता भगवान शिव शंकर महादेव की परिक्रमा कर रहे हैं। ये मंदिर हैं - चतुर मुख ब्रह्मा जी, माँ संध्या जी, महाकाल भैरव जी, श्री हनुमानजी, माँ मनसा देवी जी, माँ सरस्वती देवी जी, सूर्य मन्दिर, बगुलामुखी भगवती माँ, राम लक्ष्मण जानकी, गंगा माँ, आनन्द भैरों, गौरी शंकर मन्दिर, नर्मविश्वर महादेव, माँ तारा, माँ काली, माँ अन्नपूर्णा देवी, लक्ष्मी नारायण जी, नीलकंठ मन्दिर, नन्दी बैल बसाहा।
उपरोक्त २२ मन्दिर एक ही प्रांगण में हैं और मुख्य मन्दिर के चारों तरफ हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे यह सब देवी देवता भगवान शिव शंकर महादेव की परिक्रमा कर रहे हैं। प्रांगण में दक्षिण की ओर संध्या और कालभैरव मन्दिर के बीच पीतल का एक बड़ा घंटा लटकता दिखाई देता है। यह घंटा नेपाल नरेश ने दिया था।
इसके अतिरिक्त मंदिर के प्रांगण में एक कुआँ भी  है,जिसे चन्द्रकूप के नाम से जाना जाता है. यह एक पुराना और ऐतिहासिक कुँआ है| रावण ने अनेक तीर्थों के जल इस कूप में डाले थे। सरदार पंडा वंशज के स्वर्गीय चन्द्रपाणि ओझा ने इस कूप का जीर्णोद्धार कराया था। मन्दिर के तीन दरवाजे हैं। उत्तर दिशा में सिंह द्वार है, यह चन्द्रकूप के पास है। काँवर इसी प्रवेश द्वार से लेकर आते हैं। दूसरा पूर्व द्वार है, तीसरा पश्चिम द्वार है। तीनों द्वारों के ऊपर कीर्तन भवन हैं और तीनों द्वारों की अलग-अलग कीर्तन मंडलियाँ है जो प्रतिदिन सायंकाल कीर्तन करती हैं। पूर्व दरवाजा कीर्तन मंडली का नाम-पंडा कीर्तन मंडली है | दूसरी उत्तर दरवाजा कीर्तन मंडली का नाम बमबम ब्रह्मचारी कीर्तन समाज है। तीसरी कीर्तन मंडली जो पश्चिम दरवाजे पर है उसका नाम रामकृष्ण कीर्तन मंडली है। इसके अतिरिक्त बाजार में बालेश्वरी कीर्तन मंडली तथा फूलचन्द कीर्तन मंडली है।

अन्य दर्शनीय स्थान


शिवगंगा

यह एक अति प्राचीन सरोवर है जो मुख्य मन्दिर से उत्तर की ओर बाजार के आखिर में है। कहा जाता है कि रावण ने लघुशंका करने के बाद अपने हाथ धोने के लिए पृथ्वी में मुट्ठी मार कर जल प्रवाहित किया था जिससे यह सरोवर बना | सरोवर के किनारे पक्के घाट हैं | यात्री शिव गंगा में स्नान करके वैद्यनाथ मन्दिर के दर्शन करने जाते हैं।

बैजु मन्दिर

यह भगवान् शिव का प्राचीन मन्दिर है। यह मुख्य मन्दिर से दक्षिण की ओर बस स्टैंड की तरफ सिनेमा हाल के पास है। पहले यहाँ हरतिकी वन था और बैजु अपनी गाय चराता था उसने अपनी भोली भात्री भक्ति से भगवान् शिव को प्रसन्न किया और भागवान् शिव बेजु के नाथ बैजनाथ हुए।

हरिला जोड़ी

शिव गंगा सरोवर से उत्तर की ओर देवघर बलसरा रोड से तीन मील दूर प्रसिद्ध उपतीर्थ हरिला जोड़ी है। जाने के लिये कच्ची सड़क है। यहाँ एक जोड़ा हरितकी वृक्ष का था। इसीलिये इसे हरिला जोड़ी कहा जाता है।

युगल मन्दिर (नौ लखा)

बालानन्द रोड पर बस अड॒डे से दक्षिण की ओर लगभग ३-४ की० मी० के फासले पर युगल मन्दिर है। इसे नौ लखा मन्दिर भी कहते हैं। यह मन्दिर रानी चारुशिला (रानी पाथुरिया घाट कलकत्ता) ने बनवाया था | बाल गोपाल चारूशिला रानी के ईष्ट दवता थे । मन्दिर में एक तरफ भगवान श्री कृष्ण लड्डू गोपाल की मूर्ति है तथा दूसरी तरफ रानी चारुशिला के गुरु बालानन्द ब्रह्मचारी की मूर्ति है | रानी ने अपने पुत्र की यादगार में यह मन्दिर बनवाया | उनका एक ही लड़क़ा था जो ८ साल की उम्र में ही गुजर गया था। उन्होंने एक लड़का गोद लिया। उस लड़के की पाँच लड़कियाँ हुईं। लड़का कोई भी नहीं हुआ | वह गोद लिया हुआ लड़का भी गुजर गया । रानी विरक्त हो गई ओर उसने यह मन्दिर निर्माण कगया | १६३२ में इसकी नींव रखी और १६४१ में निर्माण पूरा हुआ | इसका असली नाम युगल मन्दिर है। युगल मन्दिर नाम इसलिये रखा क्योंकि इसमें गुरू बालानन्द तथा भगवान गोबिन्द का जोड़ा है। एक तरफ गोबिन्द हैं, और दूसरी तरफ गुरु बालानन्द हैं। इस मन्दिर पर नौ लाख रुपये खर्च करने की योजना थी । इसलिये इसे नौ लखा मन्दिर कहते हैं | परन्तु रुपया नौ लाख से भी अधिंक (लगभग साढ़े ११ लाख) खर्च हुआ । मन्दिर के बाहर दीवार पर यशोदा माता बालरूप श्रीकृष्ण को लिये हुए की मूर्ति है । मन्दिर के पीछे की दीवार पर कालिया दमन के दृश्य की मूर्ति अंकित है। मन्दिर में प्रवेश करते ही कुछ सीढ़ियाँ चढ़ कर रानी चारुशिला की संगमरमर की मूर्ति है।

तपोवन

यह युगल मन्दिर से आगे पहाड़ी पर है। बाबा वैद्यनाथ मन्दिर से लगभग ८ कि० मी० है | यहाँ पर श्री बालानन्द ब्रह्मचारी की ध्यान कुटी है । यहीं पर उनको सिद्धि प्राप्त हुई थी। यहाँ पर बालेश्वर शिव तथा दुर्गा माँ का मन्दिर है।

त्रिकुटाचल पहाड़

यह मयूराक्षी नदी का उद्गम है | तपोवन से १० कि० मी० दूर त्रिकुट नामक पहाड़ी है। यहाँ त्रिकुटेश्वर (शिव मन्दिर है|

नन्दन पहाड़

वैद्यनाथ मन्दिर से लगभग डेढ़ मील दूर पश्चिम की ओर एक छोटी-सी पहाड़ी है जिसे नन्दन वन कहते है। यहाँ शिव, पार्वती, गणेश, काली एवम कार्तिकेय का मन्दिर है।

अजगेबी नाथ मन्दिर सुलतान गंज

यह गंगा की धारा के मध्य स्थित महादेव का मन्दिर है। इसे देखने के लिए नाव से जाया जा सकता है।

मुख्य मन्दिर वासुकि नाथ

यह मन्दिर देवधर से लगभग २८ मील दूर है। देवघर दुमका सड़क के पास वासुकि नाथ नामक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है।

इसके अतिरिक्त ध्यान कुटी, स्फटिक स्वयम्भु लिंग, चंडी पहाड़ी, कुंडेश्वरी देवी, रामनिवास ब्रह्मचर्य आश्रम, मानसिंही (मानसरोवर) देवसंघ (नवदुर्गा) सत्संग नगर, शीतला मन्दिर, पागल बाबा (श्रीमद् लीला आश्रम), पहाड़ कोठी (जसीडीह), आरोग्प भवन (जसीडीह), आदि भी देखने योग्य स्थान हैं।

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