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12 Jyotirlingas of India in Hindi: भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग

12 Jyotirlingas of India
भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग

भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग (12 Jyotirlingas of India in Hindi)

भारत देवताओं की भूमि है और भगवान शिव दुनिया भर के हिंदुओं के सबसे अधिक पूजनीय देवता हैं। माना जाता है कि शिवलिंग के रूप में पूजे जाने वाले भगवान शिव अपने सभी सच्चे भक्तों को मोक्ष का आशीर्वाद देते हैं। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों को 'द्वादश ज्योतिर्लिंग' भी कहा जाता है। इन्हें भगवान शिव को समर्पित सभी तीर्थस्थलों में से सबसे पवित्र माना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं की मान्यताओं के अनुसार, जो भी इन 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों के दिव्य दर्शन करता है, उसे जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। आइये जानते हैं भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों के बारे में:

सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple, Gujarat in Hindi)

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सोमनाथ मंदिर
गुज़रात राज्य के सोमनाथ में अरब सागर के तट पर स्थित सोमनाथ मंदिर बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से पहला है। भारत के सभी ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से इसे सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। हर साल हजारों भक्त ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने यहाँ आते हैं। खासकर महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ बहु ज्यादा भीड़ होती है। किंवदंतियों के अनुसार, चंद्रमा देव ने अपनी पत्नियों (दक्ष प्रजापति की बेटियों) की उपेक्षा की थी। यह देखकर दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा को शाप दिया कि वह अपनी चमक खो देगा। इससे दुखी होकर, चंद्रमा देव ने इस स्थान पर 4000 वर्षों तक भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग  समक्ष प्रार्थना की। चंद्रमा की भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने उन्हें महीने में केवल 15 दिनों के लिए चमक प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया। तत्पश्चात चंद्रमा भगवान ने भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण किया। अतीत में यह मंदिर कई बार अरब और अफगानी आक्रमणकारियों के आक्रमणों का शिकार हुआ। लेकिन इन सभी आक्रमणों और विनाशों के बाद भी इस पवित्र स्थान की महिमा अछूती रही। 1947 में, सरदार वल्लभभाई पटेल के आदेश पर मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा ज्योतिर्लिंग स्थापित किया गया।

मंदिर का समय: सुबह 6:00 बजे से रात 10:00 बजे तक

मल्लिकार्जुन मंदिर, आंध्र प्रदेश (Malikarjun Jyotirlinga in Hindi)

srisailam malikarjuna temple
मल्लिकार्जुन मंदिर

होयसला राजा, वीर नरसिम्हा द्वारा लगभग 1234 ईस्वी में निर्मित, 'मल्लिकार्जुन मंदिर' भारत में एक और पवित्र ज्योतिर्लिंग मंदिर है। मल्लिकार्जुन मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में एक पहाड़ी पर स्थित है। वास्तुकला की द्रविड़ शैली में निर्मित यह मंदिर तत्कालीन होयसला कारीगरों की विस्मयकारी मूर्तिकला कौशल का अद्भुत नमूना है। रामायण और महाभारत के दृश्यों को दर्शाने वाली मूर्तियों और नक्काशी सबको आकर्षित करती हैं। शिवपुराण के अनुसार, भगवन शिव अपनी पत्नी देवी पार्वती के साथ यहां क्रौंच पर्वत पर अपने ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को मनाने के लिए आये थे। कार्तिकेय इस बात से दुखी थे कि उनके छोटे भाई भगवान गणेश का विवाह उनसे पहले हो गया था।  भगवान शिव ने कार्तिकेय को शांत करने के लिए यहां क्रौंच पर्वत पर ज्योतिर्लिंग का रूप धारण कर लिया। मंदिर में मल्लिकार्जुन (भगवान शिव) और भ्रामराम्भा (देवी पार्वती) की मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं। यह एकमात्र मंदिर है, जहां तीर्थयात्री मूर्तियों को छू सकते हैं, जिसकी अनुमति किसी अन्य शिव मंदिर में नहीं है।

मंदिर का समय: सुबह 4:30 बजे से रात 10:00 बजे तक

महाकालेश्वर मंदिर, मध्य प्रदेश (Mahakaleshwar Temple, Ujjain in Hindi)


mahakaleshwar temple
महाकालेश्वर मंदिर

मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक शहर उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित, महाकालेश्वर मंदिर, बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के अलावा, भारत के शीर्ष तांत्रिक मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण इसकी 'भस्म-आरती' है जो सुबह के समय की जाने वाली पहली रस्म है, जिसके दौरान शिवलिंग को ताज़े अंतिम संस्कार की चिता से राख से नहलाया जाता है। दुनिया भर से हजारों तीर्थयात्री प्रतिदिन यहां आते हैं. विशेष रूप से सावन के महीने में और नागपंचमी के दिन इस मंदिर में काफी भीड़ होती है। महाकालेश्वर मंदिर के पीछे कई पौराणिक कथाएँ हैं, लेकिन, जो सबसे अधिक चर्चित है, वह इस प्रकार है. दुशाना नाम का एक राक्षस उज्जैन शहर के लोगों और ब्राह्मणों पर अत्याचार करता था. भगवान शिव उसका नाश करने के लिए उज्जैन में जमीन से प्रकट हुए थे। राक्षस को मारने के बाद, भगवान शिव ने ज्योतिर्लिंग का रूप धारण किया और तब से वह इस पवित्र शहर में निवास कर रहे हैं।

मंदिर का समय: सुबह 3:00 बजे से रात 11:00 बजे तक

ओंकारेश्वर और ममलेश्वर मंदिर (Omkareshwar Jyotirlinga in Hindi)

 
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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
भगवान शिव का चौथा पवित्र ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के मानधाता नामक एक द्वीप पर नर्मदा नदी के तट पर 'ओंकारेश्वर' और 'ममलेश्वर' के मंदिरों में है। यह माना जाता है कि द्वीप 'ओम के आकार में है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं में एक आध्यात्मिक प्रतीक मन जाता है। शिवरात्रि, महाशिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के लिए हजारों भक्त यहाँ एकत्रित होते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के पीछे 3 किंवदंतियां हैं। पहली कथा के अनुसार, विंध्य पर्वत ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की; वरदान के रूप में भगवान शिव ने यहां दर्शन दिए और विंध्य पर्वत को आशीर्वाद दिया कि वह मेरु परबत से ज्यादा ऊँचा हो जाए। विंध्य पर्वत द्वारा पूजित लिंग को देवताओं और ऋषियों के अनुरोध पर भगवान  शिव ने दो भागों 'ओंकारेश्वर' और 'ममलेश्वर' में विभाजित किया। एक दूसरी कहानी के अनुसार, राजा मान्धाता ने अपने दोनों पुत्रों के साथ तपस्या की। उनकी भक्ति देखकर, भगवान शिव एक ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। तीसरी कहानी के अनुसार, भगवान शिव, ओंकारेश्वर के रूप में, देवों और असुरों के बीच एक हिंसक युद्ध के दौरान असुरों को हराने के लिए प्रकट हुए थे।

मंदिर का समय: सुबह 5:00 बजे से रात 10:00 बजे तक

बैद्यनाथ धाम, झारखंड (Baba Baidyanath Dham Temple, Deoghar in Hindi)

Baba-baidyanath-dham-temple
Baba-baidyanath-dham-temple


12 ज्योतिर्लिंगों में से, झारखंड के बैद्यनाथ धाम में कई किंवदंतियाँ जुड़ी हुई हैं। मंदिर परिसर झारखण्ड के देवघर में स्थित है और 21 मंदिरों की उपस्थिति से सुशोभित है। यहां मौजूद पवित्र शिवलिंग को बहुमूल्य रत्नों से सजाया गया है। यहां एक लोकप्रिय किंवदंती में कहा गया है कि यह वह जगह है जहां रावण ने भगवान शिव का आशीर्वाद लेने के लिए अपने दस सिर का बलिदान किया था। इसके बाद भगवान शिव ने वैद्य (डॉक्टर) की तरह काम किया और स्वयं उन दस सिरों को जोड़ा। इस तरह इस स्थान का नाम बैद्यनाथ धाम पड़ा। एक प्रचलित धारणा है कि इस मंदिर में प्रार्थना करने से भक्तों को स्वस्थ और समृद्ध जीवन मिलता है। मानसून के महीनों (जुलाई और अगस्त) के दौरान यहां एक वार्षिक मेला होता है, उस दौरान लाखों भक्त यहां आते हैं।
हालांकि कुछ लोग महाराष्ट्र में स्थित पार्ली वैद्यनाथ मंदिर को 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक मानते हैं। महाराष्ट्र के छोटे से गांव पराली में भी बड़ी संख्या में भक्त इस पवित्र मंदिर में जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को 1776 में रानी अहिल्या बाई ने पर्वत श्रृंखला की ढलान पर पुनर्निर्मित किया था।

परली गाँव बहुत प्राचीन है और इसे अन्य नामों से भी जाना जाता है - कांतिपुर, मध्यरेखा वैजयंती या जयंती। परली न केवल भगवान शिव के भक्तों के लिए एक तीर्थ स्थान है, बल्कि हरिहर तीर्थ के दर्शन के कारण भगवान विष्णु के भक्तों के लिए भी महत्वपूर्ण है, जहाँ से हर दिन भगवान शिव की पूजा करने के लिए पानी लाया जाता है। महाशिवरात्रि, वैकुंठ चतुर्दशी और विजयदशमी के त्योहारों के दौरान परली में बड़े उत्सव होते हैं. इन समारोहों में हिस्सा लेने के लिए देश भर से तीर्थयात्री बड़ी संख्या में यहां एकत्र होते हैं। किंवदंती यह है, जब देवता और राक्षस दिव्य अमृत के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे, तो अमृत और धनवंतरी सहित चौदह रत्न निकले। जब राक्षस अमृत को हथियाने वाले थे, उसी समय भगवान विष्णु धनवंतरि और अमृत दोनों को लेने में कामयाब रहे और उन्हें एक शिवलिंग के अंदर छिपा दिया। जब राक्षसों ने लिंग को तोड़ने की कोशिश की, तो उसमें से एक तेज रोशनी निकली जिसने उन राक्षसों को डरा दिया जो वहाँ से भाग गए। तब से, इस स्थान को वैजयंती के रूप में और मंदिर को परली वैद्यनाथ के रूप में जाना जाने लगा।

भीमाशंकर मंदिर, महाराष्ट्र (Bhimashankar Jyotirlinga Temple in Hindi)

Bhimashankar Jyotirlinga Temple
Bhimashankar Jyotirlinga Temple

भीमाशंकर मंदिर महाराष्ट्र में पुणे के पास सहयाद्री पहाड़ियों के बीच भोरगिरि नामक एक छोटे से गाँव में स्थित है। यह स्थान भीमाशंकर मंदिर की उपस्थिति के कारण बड़ा धार्मिक महत्व रखता है। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि के त्योहारों के दौरान हजारों भक्त यहां जुटते हैं। सोमवार को भी भारी भीड़ देखी जा सकती है। हिंदू पुराणों के अनुसार, भगवान शिव ने दुष्ट राक्षस त्रिपुरासुर को मारने के लिए रूद्र अवतार लिया था, जो तीनों लोकों स्वर्ग, नर्क और पाताल को नष्ट करना चाह रहा था। राक्षस को मारने के बाद, भगवान आराम करने के लिए सहयाद्रि पर्वत पर बैठ गए। उस समय उनके शरीर से जो पसीना बहा, वह भीमा नदी में बदल गया। देवों के अनुरोध पर, भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में इन पहाड़ों पर रुक गए। गुप्त भीमाशंकर, हनुमान झील,  मोक्षकुंड तीर्थ और कमलजा माता मंदिर भीमाशंकर के आसपास के कुछ अन्य धार्मिक स्थल हैं।

मंदिर का समय: सुबह 5:00 बजे से रात 9:00 बजे तक


रामनाथस्वामी मंदिर, रामेश्वरम (Rameshwaram Jyotirlinga Temple in Hindi)

Rameshwaram Jyotirlinga Temple
Rameshwaram Jyotirlinga Temple 

तमिलनाडु में स्थित रामेश्वरम का पवित्र शहर हिंदुओं के लिए एक बड़ा धार्मिक महत्व रखता है और इसे चार धाम में से एक माना जाता है। यहाँ का 'रामनाथस्वामी मंदिर' बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राक्षस को मारने के बाद लंका से लौटने के बाद, भगवान राम, शिवलिंग के रूप में भगवान शिव से प्रार्थना करके अपने पापों को धोना चाहते थे। इसलिए, उन्होंने भगवान हनुमान को हिमालय से सबसे बड़ा लिंगम लाने के लिए भेजा। चूंकि भगवान हनुमान को शिवलिंग प्राप्त करने में बहुत समय लगा, देवी सीता ने रेत से एक शिवलिंग बनाया। भगवान राम ने उस ज्योतिर्लिंग की पूजा की। शिवलिंग के स्थान वाले आंतरिक गर्भगृह में प्रवेश करने से पहले, सभी भक्तों को 22 तीर्थम या मंदिर परिसर में पवित्र जल सरोवर में स्नान करना अनिवार्य है। मंदिर के आसपास, कई और पवित्र स्थल हैं, जिनमें अग्नितीर्थम, गंधमादन पर्वतम् मंदिर, पंचमुखी हनुमान मंदिर, राम सेतु, जतायु तीर्थम मंदिर और कोंडारामस्वामी मंदिर शामिल हैं।

मंदिर का समय: सुबह 4:30 बजे से रात 8:30 बजे तक


नागेश्वर मंदिर, गुजरात (Nageshwar Jyotirlinga Temple, Gujarat in Hindi)

Nageshwar Jyotirlinga Temple
Nageshwar Jyotirlinga Temple

गुजरात में द्वारका के पास स्थित नागेश्वर महादेव मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। मंदिर की निर्माण तिथि अज्ञात है, लेकिन वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार 1996 में स्वर्गीय गुलशन कुमार द्वारा किया गया था। हर साल हजारों श्रद्धालु भगवान से आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर जाते हैं. भगवान् शिव को यहां नागदेव के रूप में पूजा जाता है। भगवान शिव की 25 मीटर ऊंची प्रतिमा इस मंदिर का एक बड़ा आकर्षण है। शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती द्वारा दारुका नामक एक दानव को आशीर्वाद दिया गया था। उनके आशीर्वाद का दुरुपयोग करते हुए, दारुका ने स्थानीय लोगों पर अत्याचार किया और कुछ अन्य लोगों के साथ सुप्रिया नामक शिव भक्त को कैद कर लिया। सुप्रिया की सलाह पर, सभी ने दारुका से खुद को बचाने के लिए शिव मंत्र का जाप शुरू कर दिया। यह देखकर, दारुका क्रोध में भड़क उठा और सुप्रिया को मारने के लिए दौड़ा, जब अचानक ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान शिव उसकी और अन्य भक्तों की रक्षा करने के लिए प्रकट हुए। तब से, ज्योतिर्लिंग यहां नागेश्वर मंदिर में प्रतिष्ठित है।

मंदिर का समय: सुबह 5:00 बजे से रात 9:00 बजे तक

काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Jayotirlinga Temple in Hindi)

kashi vishwanath jyotrilinga
kashi vishwanath jyotrilinga

काशी विश्वनाथ मंदिर पवित्र शहर काशी, जिसे वाराणसी या बनारस के नाम से भी जाना जाता है, में स्थित है। इस मान्यता के कारण हिंदुओं के लिए काशी एक बड़ा धार्मिक महत्व है कि जो गंगा के पवित्र जल में स्नान करता है या वाराणसी में मर जाता है, मोक्ष प्राप्त करता है। शहर में लगभग 2000 मंदिर हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर, यहां का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर मूल रूप से 11 वीं शताब्दी का है। इसे अफगान और अरब आक्रमणकारियों द्वारा कई बार लूटा गया था। वर्तमान मंदिर को रानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा वर्ष 1780 में पुनर्निर्मित किया गया था। मंदिर के मीनारों को शीर्ष पर स्वर्ण छत्र चढ़ाया गया है। मकर सक्रांति, कार्तिक पूर्णिमा, शिवरात्रि, महा शिवरात्रि, देव दीपावली और अन्नकूट के त्योहारों के दौरान दुनिया भर के तीर्थयात्री काशी में एकत्रित होते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा को वर्चस्व के लिए चल रही लड़ाई से रोकने के लिए अग्नि के एक अंतहीन स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। स्तंभ को देखकर, विष्णु और ब्रह्मा स्तंभ के अंत का पता लगाने के लिए अलग-अलग दिशाओं में गए। दोनों को अंत नहीं मिला, लेकिन भगवान ब्रह्मा ने झूठ बोले कि उन्हें खंभे का अंत मिल गया है। यह देखकर भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रह्मा को शाप दिया कि वह किसी के द्वारा पूजे नहीं जाएंगे और भगवान विष्णु को सर्वोच्च होने का खिताब दिया। आग का खंभा गायब हो गया, लेकिन इसका एक छोटा हिस्सा अभी भी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में काशी में बना हुआ है। काशी विश्वनाथ मंदिर के साथ-साथ, अन्नपूर्णा माता मंदिर, विशालाक्षी मंदिर और कालभैरव मंदिर सहित अन्य पवित्र स्थलों का भ्रमण तीर्थयात्रियों द्वारा किया जाता है।

मंदिर का समय: सुबह 3:00 बजे से रात 11:00 बजे तक

त्र्यंबकेश्वर मंदिर, नासिक (Trimbakeshwar Jyotirlinga Temple in Hindi)

nashik trimbakeshwar Jyotirlinga Temple
nashik trimbakeshwar Jyotirlinga Temple

महाराष्ट्र के नासिक के पास त्र्यंबक के एक छोटे से शहर में स्थित, 'त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर' 18 वीं शताब्दी का एक प्राचीन मंदिर है। पेशवा बालाजी बाजीराव के आदेश से इसका पुनर्निर्माण किया गया था। वास्तुकला की नागर शैली में काले पत्थर से निर्मित, आंतरिक गर्भगृह में त्र्यंबकेश्वर शिवलिंग है। जिसे ज्योतिर्लिंग के दर्शन हो जाते हैं उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। किंवदंतियों के अनुसार, ऋषि गौतम से एक बार अनजाने में उनके आश्रम में एक गाय की मृत्यु हो गयी थी। अपने पापों को शुद्ध करने के लिए, उन्होंने भगवान शिव की पूजा की और उन्हें पवित्र करने के लिए गंगा नदी भेजने के लिए कहा। तब गंगा नदी यहां गोदावरी नदी में प्रकट हुई। यह देखकर, सभी देवताओं ने भगवान शिव की स्तुति की और उनसे त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां निवास करने का अनुरोध किया। अन्य किंवदंती कहती है कि भगवान शिव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के तीन लिंगों के रूप में यहां निवास करते हैं और इसलिए इसका नाम 'त्र्यंबकेश्वर' है। ज्योतिर्लिंग के दर्शन के साथ, तीर्थयात्री कुशावर्त में पवित्र स्नान करते हैं, जहाँ से गोदावरी नदी का उद्गम होता है।

मंदिर का समय: सुबह 5:30 बजे से 9:00 बजे तक

केदारनाथ मंदिर, उत्तराखंड (Kedarnath Jyotirlinga Temple in Hindi)

kedarnath jyotirlinga
kedarnath jyotirlinga

उत्तराखंड में हिमालय पर्वत में स्थित, 'केदारनाथ मंदिर' बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे ऊंचा है। माना जाता है कि मंदिर की उत्पत्ति महाभारत के समय में हुई थी। केदारनाथ मंदिर भी हिंदुओं के तीर्थ स्थलों में से एक है। सर्दियों के दौरान पहाड़ियों पर अत्यधिक ठंड के मौसम के कारण, मंदिर बंद रहता है और भगवान शिव की मूर्ति को ऊखीमठ में लाया जाता है, जहां शीत महीनों के दौरान देवता की पूजा की जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, वैशाख के महीने के दौरान केदारनाथ मंदिर में मूर्ति को फिर से स्थापित किया जाता है, जिसके दौरान मंदिर तीर्थयात्रियों के लिए खुला रहता है। किंवदंतियों के अनुसार, महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों ने अपने पापों को समाप्त करने के लिए भगवान शिव के लिए एक महान तपस्या की। पांडवों से प्रसन्न होकर, भगवान शिव एक त्रिकोणीय ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। मंदिर मूल रूप से पांडवों द्वारा बनाया गया था और बाद में हिंदू गुरु आदि शंकराचार्य द्वारा पुनर्निर्माण किया गया था।

मंदिर का समय: सुबह 4:00 से रात 9:00 तक

घृष्णेश्वर मंदिर, महाराष्ट्र (Grishneshwar Jyotirlinga Temple in Hindi)

Grishneshwar Jyotirlinga Temple
Grishneshwar Jyotirlinga Temple

महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पास वेरुल नामक एक गाँव में स्थित, घृष्णेश्वर मंदिर 18 वीं शताब्दी का है। मंदिर की दीवारों पर वास्तुकला, चित्रकारी और मूर्तियां, बीते युग के कारीगरों के उत्कृष्ट स्थापत्य कौशल की याद दिलाती हैं। शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव, घुश्मा नामक एक महिला की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी ही बहन द्वारा मारे गए एक पुत्र के साथ आशीर्वाद देने के लिए प्रकट हुए थे। घुश्मा के अनुरोध पर, शिव ने यहां स्थाई रूप से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास किया।

मंदिर का समय: सुबह 5:00 बजे से रात 9:00 बजे तक

ऐसा माना जाता है कि इन सभी 12 ज्योतिर्लिंगों के पवित्र तीर्थ यात्रा करने से व्यक्ति के जीवन से अंधकार दूर हो जाता है और उसे शांति, स्वास्थ्य और खुशी मिलती है।

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