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108 शक्ति पीठों में से एक कोल्‍हापुर का श्री महालक्ष्मी मंदिर




कोल्‍हापुर का श्री महालक्ष्मी मंदिर माता के 108 शक्ति पीठों में से एक है। यदि इतिहास में दर्ज तथ्यों की मानें तो इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्‍दी में चालुक्य वंश के राजा कर्णदेव ने करवाया था। ऐसी मान्‍यता है कि इस मंदिर में स्‍थापित माता लक्ष्मी की प्रतिमा लगभग 7,000 साल पुरानी है। मंदिर के अन्दर नवग्रहों सहित, भगवान सूर्य, महिषासुर मर्दिनी, विट्टल रखमाई, शिवजी, विष्णु, तुलजा भवानी आदि अनेक देवी देवताओं के भी पूजा स्थल मौजूद हैं। इन देवी देवताओं की प्रतिमाओं में से कुछ तो 11 वीं सदी की भी बताई जाती हैं। हालांकि कुछ हाल के दौर की ही हैं। इसके अलावा मंदिर के आंगन में मणिकर्णिका कुंड पर विश्वेश्वर महादेव मंदिर भी स्थित है। 



मंदिर का स्‍थापत्‍य अत्‍यंत भव्‍य और प्रभावशाली है। यहां एक काले पत्थर के मंच पर देवी महालक्ष्मीजी की चार हस्थों वाली प्रतिमा, सिर पर मुकुट पहने हुए स्‍थापित है। माता की प्रतिमा को बहुमूल्‍य गहनों से सजाया गया है। उनका मुकुट भी लगभग चालीस किलोग्राम वजन का है जो बेशकीमती रत्‍नों से मड़ा हुआ है। काले पत्थर से निर्मित महालक्ष्मी की प्रतिमा की ऊंचाई करीब 3 फीट है। मंदिर की एक दीवार पर श्री यंत्र पत्थर पर उकेरा गया है। देवी की मूर्ति के पीछे पत्‍थर से बनी उनके वाहन शेर की प्रतिमा भी मौजूद है। वहीं देवी के मुकुट में भगवान विष्णु के प्रिय सर्प शेषनाग का चित्र बना हुआ है। देवी महालक्ष्मी ने अपने चारों हाथों में अमूल्य प्रतीक चिन्‍ह थामे हुए हैं, जैसे उनके निचले दाहिने हाथ में निम्बू फल, ऊपरी दायें हाथ में गदा कौमोदकी है जिसका सिरा नीचे जमीन पर टिका हुआ है। ऊपरी बायें हाथ में एक ढाल और निचले बायें हाथ में एक पानपात्र है। अन्य हिंदू मंदिरों से अलग पूरब या उत्तर दिशा की बजाये यहां महालक्ष्मी पश्चिम दिशा की ओर मुख करे हुए स्‍थापित हैं। देवी के सामने की पश्चिमी दीवार पर एक छोटी सी खुली खिड़की है, जिससे होकर सूरज की किरणें देवी लक्ष्मी का पद अभिषेक करते मध्य भाग पर आती हैं और अंत में उनका मुखमंडल को रोशन करती हैं। 

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